गुजरात के मोरबी में हाल ही के पुल हादसे में 135 लोगों की मौत होने के मामले में हाईकोर्ट ने नगर पालिका को कड़ी फटकार लगाई। इस दौरान कोर्ट ने गुजरात सरकार और मोरबी नगर पालिका से कई सख्त सवाल पूछे। हाईकोर्ट ने नगर पालिका के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि अधिकारी नोटिस दिए जाने के बावजूद अदालत में पेश नहीं हो रहे हैं।
कोर्ट ने पूछा, “15 जून 2016 को ठेकेदार का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी राज्य सरकार या मोरबी नगर पालिका ने कोई टेंडर क्यों नहीं जारी किया?” बार एंड बेंच के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार ने सुनवाई के दौरान पूछा, “बिना टेंडर के किसी व्यक्ति को राज्य ने इतनी बड़ी जिम्मेदारी कैसे दे दी? राज्य ने अभी तक नगर पालिका के अधिकारों पर अपना आदेश क्यों नहीं थोपा?”
जब मुख्य न्यायाधीश कुमार ने जानना चाहा कि मोरबी नगर पालिका की ओर से कौन पेश हुआ, तो एजी ने अदालत से कहा कि नगर पालिका को अभी तक अदालत से कोई नोटिस नहीं मिला है। इस पर सीजे ने जवाब दिया, ‘रजिस्ट्री ने नोटिस जारी किया था। वे (मोरबी नगर निकाय) अब होशियार बनने की कोशिश कर रहे हैं।
राज्य के अधिकारियों से जवाब मांगते हुए, अदालत ने उन्हें एक नया हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया। मोरबी में माच्छू नदी पर बना सस्पेंशन ब्रिज 30 अक्टूबर को ढह गया था, जिसमें 55 बच्चों समेत 135 लोगों की मौत हो गई थी।
नगर पालिका ने खुद को निर्दोष बताते हुए ओरेवा कंपनी को बताया था जिम्मेदार
नगर पालिका ने मामले में खुद को दोषमुक्त करने की मांग करते हुए दावा किया कि अजंता मैन्युफैक्चरिंग प्राइवेट लिमिटेड (AMPL), ओरेवा समूह की प्रमुख कंपनी है और वही पुल की सुरक्षा, संचालन और रखरखाव के लिए पूरी तरह जिम्मेदार थी। उनका यह भी तर्क है कि चूंकि निजी फर्म ने उद्घाटन के बारे में नगर पालिका को सूचित नहीं किया था, इसलिए वह सुरक्षा ऑडिट नहीं करवा सकी। हालांकि भाजपा नेता का कहना है कि नगर पालिका जिम्मेदार है।
मोरबी नगरपालिका के मुख्य अधिकारी (सीओ) संदीप सिंह जाला, जिन्होंने माना था कि पुल को फिटनेस प्रमाण पत्र के बिना दोबारा खोल दिया गया था, को इस महीने की शुरुआत में निलंबित कर दिया गया था। गुजरात उच्च न्यायालय ने मोरबी पुल के ढहने का स्वत: संज्ञान लेते हुए पिछले सोमवार को राज्य सरकार और स्थानीय अधिकारियों को नोटिस जारी किया और 14 नवंबर तक मामले की स्थिति रिपोर्ट मांगी।