हरियाणा में नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में भाजपा सरकार चल रही है। जब उनको राज्य की कमान सौंपी गई थी तो उस दौरान सत्ता विरोधी लहर चलनी शुरू हो गई थी। कुछ महीने बाद हुए राज्य विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने चेहरे और प्रधानमंत्री के चेहरे को पर जनता को फिर से विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि बीजेपी की सरकार में ही राज्य का विकास हो सकता है। इसके साथ ही बीजेपी ने सत्ता विरोधी लहर होने के बाद भी राज्य में जीत की हैट्रिक लगी। अब बीजेपी रणनीति बना रही है कि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में हारी हुई सभी सीटों पर कैसे जीत दर्ज की जा सकती है। आइए जानते हैं बीजेपी क्या तैयारी कर रही है…

हरियाणा में सत्ता बरकरार रखने के लिए सत्ता विरोधी लहर को मात देने के एक साल बाद, बीजेपी पहले से ही राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है और उसने अपने प्रत्येक विधायक को 2024 के विधानसभा चुनावों में पार्टी द्वारा हारी गई 42 विधानसभा क्षेत्रों में से एक के लिए अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंपने का फैसला किया है।

कड़ी मेहनत के बाद कांग्रेस को तीसरी हाथ लगी थी हार

हरियाणा बीजेपी अध्यक्ष मोहन लाल बडोली ने सोमवार को इंडियन एक्सप्रेस को बताया ‘अतिरिक्त विधानसभा क्षेत्र की जिम्मेदारी जिन वर्तमान भाजपा विधायकों को सौंपी जानी है वो उनके विधानसभा वाले जिले से बाहर होगा। जिन सभी सीटों पर बीजेपी को हार मिली थी उनको लेकर रणनीति के तहत उनका आवंटन मंगलवार को होने वाली भाजपा विधायक दल की बैठक में होने की संभावना है।,’

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39.9% वोट शेयर के साथ, भाजपा ने पिछले साल के हरियाणा विधानसभा चुनाव में 90 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत हासिल की थी, जो अब तक की उसकी सबसे अधिक संख्या थी। जबकि कांग्रेस ने 39.1% वोट शेयर के साथ 37 सीटें जीतीं। भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘मंत्रियों सहित मौजूदा विधायकों को जमीनी स्तर पर काम करने, वहां पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ समन्वय करने और यदि कोई समस्या हो, तो उसे हल करने के लिए एक अतिरिक्त निर्वाचन क्षेत्र आवंटित किया जाएगा।’

वहीं 2024 में चुनाव हारने वाले कुछ पूर्व विधायकों ने भी कहा है कि उन्हें भी इस अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। एक ऐसे ही नेता ने कहा, ‘पार्टी के उम्मीदवार, भले ही वे चुनाव हार गए हों, उन्हें संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के वफादार पार्टी कार्यकर्ताओं के बारे में अधिक जानकारी होती है। इसके अलावा, एक विधायक हमेशा अपने मूल निर्वाचन क्षेत्र को प्राथमिकता देगा जहाँ उसे फिर से जीतना है। अगर किसी पराजित उम्मीदवार को पार्टी और सरकार का पूरा समर्थन मिलता है, तो वह सहानुभूति के बल पर कमाल कर सकता है।’