बिहार के बाहुबली नेता मोहम्मद शहाबुद्दीन की जमानत शुक्रवार(30 सितंबर) को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी। अब मोहम्मद शहाबुद्दीन को दोबारा से जेल जाना होगा। शहाबुद्दीन को 10 सितंबर को जमानत पर जेल से रिहा कर दिया गया था। वह 11 साल बाद जेल से बाहर आया था।वह राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के करीबी है। शुरुआत से ही वह लालू के साथ रहा। शहाबुद्दीन ने 1990 में लालू यादव की सरपरस्ती में राजनीति में कदम रखा। 1986 से ही शहाबुद्दीन अपराध की दुनिया में शामिल हो चुका था, वह तब सिर्फ 19 साल का था। लालू प्रसाद यादव के साथ मिलकर शहाबुद्दीन ने मुस्लिम-यादव वोटरों पर पकड़ बनाई जिसकी बदौलत 1991 के लोकसभा चुनावों में जनता दल को बड़ी जीत हासिल हुई। जॉर्ज फर्नांडीज और शरद यादव जैसे नेताओं के विरोध के बावजूद शहाबुद्दीन लालू के लिए एक महत्वपूर्ण मुस्लिम नेता बन चुका था। शहाबुद्दीन ने पहले आरजेडी की युवा इकाई की सदस्यता ली और लगातार दो विधानसभा चुनाव जीते। महत्वाकांक्षी शहाबुद्दीन ने 1996 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। शहाबुद्दीन ने 2004 का चुनाव जीतने तक जनता दल और आरजेडी का चार बार प्रतिनिधित्व किया।
वीडियो में देखें – जमानत रद्द होने के बाद शहाबुद्दीन ने कोर्ट में किया सरेंडर
2007 में हत्या के एक मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद शहाबुद्दीन को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित कर दिया गया। शहाबुद्दीन ने सीवान के हुसैनगंज इलाके से बतौर बाहुबली शुरुआत की। राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं ने कुलांचे मारी तो शहाबुद्दीन ने मुस्लिम युवकों को खाड़ी देशों में भेजकर अच्छा नाम बना लिया। सीवान में आज भी विदेशों से सबसे ज्यादा पैसे भेजे जाते हैं। शहाबुद्दीन ने अपने इलाके में वाम पार्टियों के प्रभुत्व को तोड़ने के लिए खौफ का इस्तेमाल किया। छोटे शुक्ला महत्वपूर्ण वामपंथी नेता थे। शहाबुद्दीन ने फरवरी 1999 में शुक्ला को निशाना बनाया और उनका अपहरण कर हत्या करवा दी। शुक्ला मर्डर केस में शहाबुद्दीन को दोषी पाया गया और 2007 में उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई। सीवान आरजेडी के एक नेता के मुताबिक, “शहाबुद्दीन ने दुकानदारों को धमकाया और उनसे वसूली शुरू की। उसके गुर्गे जमीनों, दुकानों और घरों पर कब्जा करने लगे। उन्हें भूमि विवाद सुलझाने पर हिस्सा भी मिलता था। शहाबुद्दीन अदालत लगाता और शादियों के झगड़े और डॉक्टर की फीस जैसे मामले सुलझाता था। एक समय ऐसा भी आया जब उसका दबदबा कबूल करने के लिए दुकानदारों को शहाबुद्दीन की तस्वीर दुकान में लगानी पड़ी।”
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कुख्यात तेजाब कांड भी शहाबुद्दीन के गुर्गों की वजह से हुआ। वे चंद्रकेश्वर प्रसाद उर्फ चंदा बाबू और उसके एक किराएदार के बीच झगड़ा सुलझाने के बदले 2 लाख रुपए मांग रहे थे। किराएदार चंदा बाबू के हॉस्पिटल रोड वाले घर की दुकान खाली नहीं कर रहा था। चंदा के बेटे गिरीश और सतीश ने विरोध की कोशिश लेकिन शहाबुद्दीन के आदमी आए और चंदा बाबू के तीनों बेटों, राजीव, गिरीश और सतीश का अपहरण कर लिया। राजीव भागने में कामयाब रहा, बाकी दोनों भाइयों को तेजाब से नहला दिया गया, फिर गोली मारी गई। राजीव तेजाब कांड का चश्मदीद गवाह था। अदालत के सामने अपना बयान रिकॉर्ड करने के दो दिन पहले ही जून 2014 में उसकी गोली मारकर हत्या कर दी गई। शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में सजा हो चुकी है और राजीव रोशन केस में भी उसे साजिशकर्ता बनाया गया है। शहाबुद्दीन ने 2001 में सत्ता के नशे में सारी हदें पार कर दीं। एक समर्थक मनोज कुमार को हिरासत में लेने पहुंचे पुलिस अधिकारी संजीव कुमार को शहाबुद्दीन ने तमाचा मार दिया। यह जिले की पुलिस को सीधी चुनौती थी जिसके बाद पुलिस ने आस-पास के जिलों और उत्तर प्रदेश से फोर्स बुलाई और सीवान में शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्थित घर पर छापा मारा।
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दोनों तरफ से गोलीबारी हुई जिसमें दो पुलिसकर्मियों समेत आठ लोग मारे गए। घर में मिली तीन एके-47 सीज कर दी गईं लेकिन शहाबुद्दीन भाग निकलने में कामयाब रहा। नवंबर 2005 में, चुनाव खत्म होने और नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री बनने के कुछ ही दिन बाद शहाबुद्दीन को गिरफ़्तार कर लिया गया। नीतीश कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने का वादा करके सत्ता में आए थे। वह एक साफ संदेश देना चाहते थे। उन्होंने सीवान जेल में ही विशेष अदालत गठित कराई और शहाबुद्दीन का ट्रायल शुरू करा दिया। उस पर हत्या, वसूली और आर्म्स एक्ट के 18 मुकदमे दर्ज थे। सीवान पर उसका प्रभाव कम होने लगा था, उसे जेल में अपने समर्थकों से मिलने की इजाजत नहीं थी। 2007 में दोषी करार दिए जाने के बाद अदालत ने शहाबुद्दीन के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी जिससे उसका राजनीतिक रसूख भी कम होने लगा।
शहाबुद्दीन ने अपनी बीवी हीना शहाब को 2009 के लोकसभा चुनावों में सीवान से उम्मीदवार बनाकर अपनी राजनीतिक जमीन बनाए रखने की कोशिश की। हीना के सामने निर्दलीय उम्मीदवार ओम प्रकाश यादव और जेडीयू के ब्रिशेन पटेल थे। हीना चुनाव हार गईं और शहाबुद्दीन की उम्मीद भी खत्म हो गई। वह राजनीतिक रूप से कमजोर पड़ता जा रहा था, साथ ही साथ बिहार राजनीति में नीतिश की अगुवाई में एनडीए ने राजद को भी कमजोर कर दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों में वही कहानी दोहराई गई और हीना फिर चुनाव हार गईं। लेकिन नीतीश कुमार के लालू से हाथ मिलाते ही राजनैतिक समीकरण बदलने शुरू हो गए। नीतीश और लालू छपरा उपचुनाव में एक राजनैतिक रैली को सम्बोधित कर रहे थे। यह पहला मौका था जब हीना शहाब ने नीतीश कुमार के साथ मंच साझा किया था।
बिहार: 11 साल बाद रिहा हुआ मोहम्मद शहाबुद्दीन
हीना को नीतीश के कान में कुछ कहते देखा गया था जिन्होंने कोई भाव नहीं दिखाए लेकिन संदेश पहुंच चुका था। शहाबुद्दीन के लिए दरवाजे फिर खुलने लगे थे। जेल में उससे मिलने वालों की संख्या बढ़ गई थी। उसकी बैठकें जल्द ही दरबार में बदल गईं जहां वो लोगों की तकलीफें सुनता था। 2015 के चुनावों में सीवान के टिकट जारी करने में शहाबुद्दीन का अहम किरदार था। हाल ही में जब बिहार के सामाजिक न्याय मंत्री अब्दुल गफूर जेल में शहाबुद्दीन से मिलने गए, तो सीएम नीतीश कुमार ने मंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, अलबत्ता जेल सुपरीटेंडेंट को जरूर सस्पेंड कर दिया गया। सीवान जेल सुप्रिटेंडेंट विधु भारद्वाज ने The Indian Express को बताया, “हम सुबह 8 से दोपहर 12 बजे तक लोगों को शहाबुद्दीन से मिलने देते थे, उन्हें 15 से ज्यादा लोगों से मिलने की इजाजत नहीं थी। जब मैंने मिलने वालों की संख्या पर लगाम लगाने की कोशिश की, बहुतों ने शहाबुद्दीन से मिलने के लिए जबरदस्ती की। हां, यह एक तरह से अदालत लगाने जैसा है जिसे हम बर्दाश्त नहीं कर सकते।’