लंबे शासनकाल में निगम की बेहतर छवि नहीं बना पाना और संगठन के विस्तार को जमीनी स्तर तक नहीं ले जा पाना भी हार का प्रमुख कारण माना जा रहा है। इसके अलावा दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली भाजपा यहां अपना काम जनता के सामने पेश नहीं कर पाई है। हालांकि, इस पूरे चुनाव में भाजपा ने दिल्ली सरकार के मंत्री सत्येंद्र जैन के जेल वीडियो को चुनाव प्रचार का आधार बनाया है।
टिकट बटवारे के पंच परमेश्वर हो गए गायब
भाजपा का जनाधार पंच परमेश्वर को माना जाता है। इसलिए चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने पंच परमेश्वर सम्मेलन से ही अपनी चुनावी तैयारियों का आगाज किया था। इस बार के चुनाव में टिकट बंटवारे के बाद पार्टी में इनकी कमी खली है। इसके अतिरिक्त टिकट के बाद में पार्टी जिला अध्यक्ष समेत कई नेता बागी तक हुए हैं। इन बागी नेताओं को पार्टी को छह साल के लिए निष्कासित भी करना पड़ा। पार्टी अपनी अंदरूनी कलह को थाम नहीं पाई। यह अंतरकलह पार्टी के लिए हानिकारक साबित हुआ है।
अंदरूनी लड़ाई और बगावत रही भारी
15 साल तक निगम में कब्जा होना भी भाजपा के लिए नुकसान की बड़ी वजह रहा है। दरअसल इस दौर में पार्टी का एक नया कैडर तैयार हुआ और वह निगम चुनाव मैदान में उतरने के लिए भी तैयार था, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व और प्रदेश नेताओं की अगुआइ में उसकी बात नहीं सुनी गई। इस कारण बड़ा धड़ा चुनाव शुरू होने के साथ ही पार्टी की तैयारियों से कट गया। संगठन के बीच पैदा हुई इस दूरी ने सक्रिय लोगों को ही चुनाव प्रक्रिया से दूर कर दिया। इसमें से कई सक्रिय नेता बागी भी हुए और पार्टी के फैसले के खिलाफ जाकर इन लोगों ने पर्चा भी दाखिल किया। पार्टी सूत्र बताते हैं कि सासंदों को भी टिकट बंटवारे को लेकर विश्वास में नहीं लिया गया।
आठ साल बनाम 15 साल
निगम चुनाव में इस बार का मुद्दा आम आदमी पार्टी ने आठ साल बनाम पंद्रह साल का कामकाज बनाया था। इसका असर यह हुआ कि पूरा चुनाव आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी पर केंद्रीत हो गया। इस सीधी टक्कर की वजह से भाजपा को सबसे अधिक नुकसान हुआ। पूरे चुनाव में कांग्रेस वोट बैंक का असर इस बार भी फीका रहा, जोकि भाजपा के लिए नुकसान का कारण बना।
पार्टी मान रही थी कि सीटों पर त्रिकोणीय टक्कर होगी और इसका लाभ उसे मिलेगा। इसके अतिरिक्त 15 साल के लंबे कार्यकाल की वजह से जनता का गुस्सा भी इस बार चुनाव में सामने आया है।