बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना जाने के लिए भाजपा की ‘निर्भय यात्रा’ और उसके जवाब में सत्ताधारी सपा की ‘सद्भावना यात्रा’ को आपसी मिलीभगत का परिणाम बताते हुए शुक्रवार (17 जून) को कहा कि इसका मकसद आगामी विधानसभा चुनाव से पहले साम्प्रदायिक दंगें कराकर चुनावी लाभ उठाना है। मायावती ने यहां जारी एक बयान में कहा कि वैसे तो कैराना से कथित पलायन के मामले को भाजपा साम्प्रदायिक रंग देने के साथ-साथ उसका गलत राजनीतिक लाभ उठाने के लिये काफी जÞोर लगाये हुये है, लेकिन सपा सरकार भी राज धर्म को भूलकर ऐसे तत्वों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि बसपा की मांग है कि भड़काने का काम करने वालों के खिलाफ तत्काल सख्त कार्रवाई की जाये। वरना उत्तर प्रदेश एक बार फिर साम्प्रदायिक दंगे की आग में जलेगा जिसकी पूरी जिम्मेदारी सपा और उसकी सरकार की होगी।
बसपा अध्यक्ष ने गोरखपुर में एक सपा नेता की थाने में पिटायी के मामले में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अनन्त देव के निलम्बन को अनुचित कदम बताते हुए कहा कि सपा सरकार पूरे तौर पर जंगलराज से घिर चुकी है। ऐसा लगता है कि केन्द्र की भाजपा सरकार की तरह ही प्रदेश की सपा सरकार भी गलत, जातिवादी व पक्षपाती मानसिकता से काम करते हुए उन सभी अधिकारियों को दण्डित कर रही है जो कानून के अनुसार निष्पक्षता से काम करने का थोड़ा भी साहस कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि गोरखपुर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक का कुÞसूर सिर्फ इतना था कि उनकी पुलिस ने एक सपा नेता की गुण्डई और दबंगई को रोकने की कोशिश की थी। क्या इस प्रकार के गलत कार्यों से प्रदेश की कानून-व्यवस्था कभी भी बेहतर हो पाएगी।
मायावती ने कहा कि यह एक और उदाहरण कि सपा के गुण्डों, बदमाशों, माफियाओं, अराजक, आपराधिक और साम्प्रदायिक तत्वों के आगे अधिकारियों की बिल्कुल भी नहीं चल पा रही है। गुजरात के इशरत जहाँ मुठभेड़ मामले में कुछ फाइलों के गायब होने से सम्बन्धित गृह मंत्रालय की जाँच के बारे में मीडिया में छपी रिपोर्ट का हवाला देते हुए बसपा प्रमुख ने कहा कि इससे भी यह स्पष्ट हो जाता है कि केन्द्र सरकार संवेदनशील मामलों में भी सही नीयत से काम नहीं कर रही है। केन्द्रीय सरकारी एजेन्सियों व मंत्रालयों का राजनीतिक इस्तेमाल गलत है और ऐसी द्वेषपूर्ण राजनीति नहीं करनी चाहिए। मायावती ने कहा कि इसका एक उदाहरण हैदराबाद के दलित छात्र रोहित वेमुला के मामले में भी जग-जाहिर हो चुका है, जिसे इस हद तक प्रताड़ित किया गया कि उसे आत्महत्या तक के लिये मजबूर होना पड़ा और उसे आज तक इन्साफ भी नहीं मिल पाया।