उत्तर प्रदेश के देवबंद में हो रही जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में AIUDF के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि अब खामोश बैठकर तमाशा देखने का वक्त नहीं है। रविवार (29 मई 2022) को जमीयत की बैठक के दूसरे दिन उन्होंने कहा कि आज जहां ये सरकार बैठी है कल हम भी वहां बैठ सकते हैं, ये सिर्फ अल्लाह की दो उंगलियों के बीच में है।
जमीयत ने सियासी दलों और सरकारों को नसीहत दी कि अतीत के गड़े मुर्दे उखाड़ने से बचना चाहिए। मुस्लिम संगठन ने अपने प्रस्ताव में कहा कि मंदिर-मस्जिद विवाद से अमन-शांति को नुकसान हो रहा है। इसके साथ ही जमीयत ने अपने प्रस्ताव में 1991 के वर्शिप एक्ट का हवाला देते हुए ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को संविधान का उल्लंघन बताया गया है। संगठन ने कहा कि इतिहास सुधारने के नाम पर मस्जिदों और इबादतगाहों में विवाद खड़ा किया जा रहा है।
कॉमन सिविल कोड बर्दाश्त नहीं: देवबंद में जमीयत के अधिवेशन में कई प्रस्ताव पेश किए गए। बैठक में कॉमन सिविल कोड पर भी प्रस्ताव पारित किया गया। मुस्लिम संगठन ने कहा कि कॉमन सिविल कोड किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में शरीयत को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने सख्त रुख अपनाया और कहा कि इस्लामी शरीयत में किसी तरह की दखलंदाजी मंजूर नहीं है।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद की बैठक में कहा गया कि मुस्लिमों को उनके अधिकारों से वंचित रखने की कोशिश की जा रही है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव नियाज अहमद फारूकी ने कहा, “हम लोग जिन विवादित मुद्दों पर लड़ रहे हैं ऐसे हालात में हम अभी बुद्धिमानी से सोच भी नहीं पा रहे हैं कि क्या सही है और क्या गलत। ऐसे में यूनिफॉर्म सिविल कोड को छेड़ना देश के हित में नहीं है।”
अधिवेशन के दूसरे दिन मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि कितना कुछ सहने के बावजूद हम चुप हैं। यह हमारे सब्र का इम्तिहान है। अगर हमारा खाना, पहनना पसंद नहीं है तो हमारे साथ मत रहो, कहीं और चले जाओ। मौलाना ने कहा कि हमारा मजहब अलग है, हमारा लिबास अलग है, हमारे खाने-पीने, पहनने का तरीका भी अलग है। अगर तुमको हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो तुम कहीं ओर चले जाओ। मौलाना मदनी ने कहा कि वे जरा-जरा सी बात पर हमें कहते हैं कि पाकिस्तान चले जाओ। तुम्हें मौका नहीं मिला था पाकिस्तान जाने का। हमें मौका मिला लेकिन हमने रिजेक्ट कर दिया था।