अपने अल्फाज और अंदाज के लिए मशहूर मारूफ शायर मलिकजादा मंजूर अहमद का शुक्रवार (22 अप्रैल) को निधन हो गया। वह करीब 90 साल के थे। परिवार के सूत्रों ने बताया कि अहमद दिल के मरीज थे और उन्हें तीन दिन पहले लखनऊ के खुर्रमनगर स्थित निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुक्रवार दोपहर दो बजकर दो मिनट पर उनकी सांसों की डोर टूट गई। उनके परिवार में पत्नी, दो बेटे तथा छह बेटियां हैं। आंबेडकरनगर में किछौछा के पास स्थित गिदहुड़ गांव में 17 अक्तूबर, 1926 को जन्मे अहमद ने गोरखपुर में शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने आजमगढ़ स्थित शिबली कालेज में 13 साल तक अंग्रेजी के शिक्षक के तौर पर काम किया।
देश-विदेश में मुशायरों की बेहतरीन निजामत के लिए मशहूर अहमद ने हिन्दुस्तान के अनेक शहरों के साथ-साथ सऊदी अरब, अमेरिका, कनाडा, ईरान, ओमान, कतर, पाकिस्तान समेत कई मुल्कों के सैकड़ों मुशायरों में शिरकत की। उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष रह चुके अहमद ने अनेक रौशन कृतियां दीं। उर्दू का मसला, कॉलेज गर्ल, शहर-ए-सितम, रक्स-ए-शरार, शेर-ओ-अदब, मौलाना आजाद-अल हिलाल के आईने में, अबुल कलाम आजाद-फिक्र-ओ-फÞन उनकी कुछ चुनिंदा व मशहूर रचनाएं हैं। अहमद को उर्दू साहित्य के प्रति उत्कृष्ट योगदान के लिए उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, सूफी जमाल अख्तर पुरस्कार समेत कई अवार्ड से नवाजा गया।
शायर अनवर जलालपुरी ने अहमद के निधन पर गहरा अफसोस व्यक्त करते हुए कहा कि उनका अहमद से 50 बरस का रिश्ता टूट गया। वह एक उस्ताद, दोस्त,सरपरस्त थे। उन्होंने कहा, ‘मुशायरों के लिहाज से मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा। मुशायरों की निजामत को एक फन बनाने का काम अहमद ने ही किया। उन्होंने मुशायरों को उर्दू की हिमायत और वकालत का मंच बनाया।’ जलालपुरी ने कहा कि अहमद देश में मौलाना अबुल कलाम आजाद पर पीएचडी करने वाले पहले शख्स थे। उसके बाद उन्होंने आजाद पर बेहतरीन किताबें लिखीं।

