Manipur Violence : मणिपुर में बुधवार (2 मई) को मैतेई समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने की मांग के विरोध से शुरू हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद हालत लगातार बिगड़ते हुए नजर आ रहे हैं।
ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के नाम से एक रैली का आयोजन किया था जिसके बाद यह हिंसा भड़की है।
हालात इतने खराब हो गए है कि मणिपुर सरकार ने हिंसा करने वालों को देखते ही गोली मारने का आदेश दिया है। इस हिंसा के दौरान मणिपुर की राजधानी इम्फाल सहित कई हिस्सों में मिजोरम के लोग भी फंसे हैं।
मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने शुक्रवार को कहा कि उनकी सरकार हिंसा प्रभावित मणिपुर में फंसे मिजोरम के लोगों को निकालने के लिए कदम उठा रही है। ज़ोरमथांगा ने मिज़ोरम में रहने वाले मणिपुर के लोगों की सुरक्षा का भी आश्वासन दिया।
मिजोरम सरकार ने एक नोटिस जारी कहा है कि इम्फाल और मणिपुर के अन्य हिस्सों में फंसे मिजोरम के लोगों को निकालने के लिए इंफाल हवाई अड्डे से लेंगपुई, मिजोरम, हवाई अड्डे तक उड़ान की आवश्यकता के बारे में जानकारी प्राप्त की जा रही है और इन लोगों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की है।
मिजोरम सरकार ने जारी किया नोटिस
मिजोरम सरकार ने शुक्रवार (5 मई) को एक नोटिस जारी कहा है कि प्रदेश में में कानून व्यवस्था की स्थिति और लोगों की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जा रहे हैं और सुरक्षा इंफाल शहर मिजोरम के लोगों की सुरक्षा को लेकर भी जानकारी इकट्ठी की जा रही है। इनके लिए बेहतर व्यवस्था करने की कोशिश की जा रही है। इस संबंध में पुलिस के हेल्पलाइन नंबर सक्रिय कर दिए गए हैं। (ट्वीट में मौजूद नोटिस में देखे जा सकते हैं)
मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने कहा कि उन्होंने मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से आग्रह किया है कि वे राजधानी इंफाल में फंसे आदिवासी लोगों की सुरक्षित वापसी राज्य के चुराचंदपुर और अन्य जिलों में उनके पैतृक गांवों में सुनिश्चित करें और उन्होंने आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया।
क्यों भड़क रही है हिंसा?
बुधवार (3 मई) को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने मार्च का ऐलान किया था। यह मार्च मैतेई समुदाय को एसटी श्रेणी में शामिल करने की लंबे समय से चली आ रही मांग के विरोध में था। जिसे पिछले महीने मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश से बढ़ावा मिला था।
मणिपुर उच्च न्यायालय एकल न्यायाधीश द्वारा पारित मांग और आदेश दोनों का राज्य के आदिवासी समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले समूहों द्वारा कड़ा विरोध किया गया है। 14 अप्रैल को जारी अदालत के आदेश में सरकार से मांग पर विचार करने को कहा गया है। इसके बाद कई आदिवासी समूह इसके खिलाफ आ खड़े हुए हैं।