चंडीगढ़ जिला अदालत में एक 43 वर्षीय कमर्शियल पायलट ने अलग-अलग संस्थाओं के खिलाफ मुकदमा दर्ज करवाकर करीब 98.70 करोड़ रुपए की मांग की है। यह मुकदमा नागरिक उड्डयन मंत्रालय, डीजीसीए, हरियाणा सिविल एविएशन डिपार्टमेंट, हरियाणा इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल एविएशन और वहां के पूर्व चीफ फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर के खिलाफ दर्ज कराया गया है। मुकदमा दर्ज कराने वाले लखबीर सिंह का आरोप है कि इन संस्थाओं की लेटलतीफी की वजह से वो 20 साल तक कमर्शियल पायलट की नौकरी नहीं कर पाए।
1999 से ही मान्य है लाइसेंसः मोहाली के रहने वाले लखबीर सिंह ने कोर्ट केस फाइल कर दिया है। इस मामले की सुनवाई के लिए 30 सितंबर की तारीख तय की गई है, इससे पहले आरोपी बनाई गई संस्थाओं को भी जवाब देना होगा। फिलहाल लखबीर पटियाला में ग्राउंड इंस्ट्रक्टर के रूप में जॉब कर रहे हैं। याचिका में सिंह ने बताया कि डीजीसीए ने उन्हें 18 अप्रैल 2018 को लाइसेंस सौंपा गया, जिस पर लिखा है कि यह 13 सितंबर 1999 से ही मान्य है।
सीपीएल के लिए जरूरी 250 घंटे की ट्रेनिंगः सिंह की याचिका के मुताबिक 26 मई 1995 को सिविल एविएशन हरियाणा की तरफ से जारी किए गए विज्ञापन में प्राइवेट पायलट लाइसेंस (पीपीएल) और कमर्शियल पायलट लाइसेंस (सीपीएल) के लिए प्रवेश दिए जाने की बात कही गई। सिंह ने सीपीएल के लिए आवेदन दे दिया, इसके लिए उन्हें कम से कम 250 घंटों की फ्लाइंग ट्रेनिंग लेकर कुछ तकनीकी परीक्षा पास करनी थी।
यूं बेकार गई सिंह की मेहनतः उन्हें स्पॉन्सर्ड कैंडिडेट के रूप में पिंजोर एविएशन क्लब में प्रवेश मिला, तीन साल में उनकी ट्रेनिंग पूरी होनी थी। लेकिन उनकी ट्रेनिंग में जानबूझकर लेटलतीफी करने का आरोप लगा है। सिंह ने आरोप लगाया कि उन्होंने सभी टेक्निकल पेपर्स समय से ही पास कर लिए थे और हरियाणा फ्लाइंग कोटा के लिए योग्य थे, लेकिन पात्रता के बावजूद उन्हें इसका लाभ नहीं मिला। इन पेपर्स की वैधता दो सालों की होती है। इसके बाद हरियाणा फ्लाइंग कोटा नहीं मिलने के चलते न सिर्फ उनकी ट्रेनिंग में देरी हुई, बल्कि नॉलेज पेपर की वैधता भी खत्म हो गई।
ऐसे लड़ी कानूनी जंगः सिंह ने आरोप लगाया कि तत्कालीन फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर ने भाई-भतीजावाद के चक्कर में उन्हें जानबूझकर हरियाणा फ्लाइंग कोटा नहीं दिया, जबकि कई कैंडिडेट्स फर्जी दस्तावेजों के दम पर ट्रेनिंग ले रहे थे। सिंह के मुताबिक उन्होंने तीन बार हाईकोर्ट पहुंचकर इंसाफ पाने की कोशिश की। उन्होंने 1997 में रिट याचिका, 1999 में अवमानना याचिका लगाई। इसके बाद 1999 में उन्हें अपनी फ्लाइंग ट्रेनिंग पूरी करने की अनुमति दी गई। लेकिन उस समय टेक्निकल (नॉलेज) पेपर्स की वैधता खत्म होने के चलते डीजीसीए ने उन्हें कमर्शियल पायलट लाइसेंस देने से मना कर दिया, बता दें कि इनकी वैधता को खत्म होने के बाद भी अधिकतम छह महीने के लिए बढ़ाया जा सकता है। सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी ही तरह दूसरे आवेदकों की वैधता नियमों का उल्लंघन करके भी बढ़ाई गई।
दो बार परीक्षा पास कर हासिल किया लाइसेंसः सिंह ने इसके बाद 1999 में नए सिरे से डीजीसीए को चुनौती देते हुए एक याचिका लगाई थी। हाईकोर्ट ने 2010 में सिंह के पक्ष में आदेश जारी किया और डीजीसीए से उन्हें 13 सितंबर 1999 की तारीख से आठ हफ्तों के भीतर कमर्शियल पायलट लाइसेंस देने के लिए कहा। 2011 में डीजीसीए ने हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की जिसे 2013 में खारिज कर दिया गया। एक बार फिर सिंह को लाइसेंस देने से इनकार कर दिया गया। इसके बाद सिंह 2010 में कोर्ट की तरफ से दिए फैसले की अवमानना का आरोप लगाकर 2014 में याचिका दायर की। इसके बाद डीजीसीए ने कहा कि सिंह को लाइसेंस दिया जाएगा यदि वे स्किल टेस्ट और परीक्षा फिर से पास कर लेते हैं। 2017 में उन्होंने फिर से परीक्षा पास करने के बाद लाइसेंस के लिए आवेदन किया और 2018 में उन्हें लाइसेंस मिल गया।
‘खत्म हो गया करियर’: अब सिंह ने लाइसेंस में देरी किए जाने से बदहाल हुई जिंदगी और इस कानूनी जंग में आईं मुश्किलों पर अपना दर्द बयां किया। उन्होंने बताया कि कोई भी 65 साल की उम्र तक कमर्शियल पायलट की जॉब कर सकता है, उनकी उम्र 43 साल हो चुकी है। अब किसी भी एयरलाइंस में जॉब पाने के लिए उनकी उम्र निकल चुकी है। ऐसे में उनके जीवन के पिछले 20 साल और अगले 23 साल पूरी तरह से बर्बाद हो गए। फिलहाल वो 40 हजार रुपए प्रति महीने कमा रहे हैं, जबकि 1999 में सीपीएल हासिल करने वाले उनके साथी अलग-अलग एयरलाइंस में 8 से 10 लाख रुपए प्रति महीना कमा रहे हैं।