भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने जीका वायरस की दवा की खोज में उल्लेखनीय प्रगति की है। उन्होंने जीका वायरस पर मलेरिया की दवा (हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन) का असर देखने के लिए लक्षित प्रोटीन का पता लगाया है। इसमें पाया गया कि यह जीका वायरस के अहम इंजाइम को पनपने से रोकने में कामयाब रहा। शोधकर्ताओं के मुताबिक, जीका वायरस की दवा विकसित करने में यह क्रांतिकारी कदम है। आइआइटी मंडी में जैव तकनीक विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. रजनीश गिरि की अगुआई में यह शोध किया जा रहा है। इससे पहले अमेरिका के सेंट लुई स्थित वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर इंदिरा मैसूरकर की खोज से पता चला कि मलेरिया की प्रचलित दवा हाइड्राक्सीक्लोरोक्वीन जीका वायरस के संक्रमण की संभावना कम करती है। जीका वायरस का संक्रमण मां से उसके गर्भ में पल रहे बच्चे तक को हो सकता है। इस नतीजे पर काम करते हुए प्रो. गिरि की प्रयोगशाला ने उस लक्षित वायरल प्रोटीन की पहचान की है, जिस पर एचसीक्यू असर करता है। प्रो. गिरि ने प्रो. मैसूरकर के अतिरिक्त तमिलनाडु की अलगप्पा विश्वविद्यालय के प्रो. संजीव कुमार सिंह का सहयोग भी लिया है। उनका शोध पत्र हाल ही में एसीएस ओमेगा में प्रकाशित किया गया। यह अमेरिकन केमिकल सोसायटी का जर्नल है।
जीका वायरस के वाहक मच्छर हैंं। यह फ्लैवीवायरस जीनस से संबद्ध पैथोजेन है, जिसका पूरी दुनिया में प्रकोप बढ़ रहा है। इस जीनस के अन्य सदस्यों में शामिल हैं, डेंगू के वायरस, यलो फीवर वायरस और जापानी इनसेफ्लाइटिस के वायरस। जीका संक्रमित मरीज के लक्षण हैं- बुुखार, सिरदर्द, सुस्ती, आंखों में लाली। इसका स्नायु रोगों से भी संबंध हो सकता है जैसे कि गायलन-बरे सिंड्रोम। अधिक गंभीर होने पर जीका के संक्रमण से गर्भस्थ शिशु में माइक्रोसेफैली जैसी गंभीर बीमारियां होती है।
जुलाई 2017 में प्रोफेसर मैसूरकर के दल ने पता लगाया था कि एचसीक्यू वायरस से उत्पन्न ऑटोफैगी को रोकता है और इसलिए गर्भस्थ शिशु में वायरस का संक्रमण कम कर सकता है। प्रोफेसर मैसूरकर के समूह ने मलेरिया की दवा का चयन मूलत: ऑटोफैगी रोकने की इसकी क्षमता परखने के लिए किया, पर जीका टार्गेट प्रोटीन पर इसका असर ज्ञात नहीं था। प्रो. गिरि ने बताया कि हमारे शोध से वायरस का ऐसा प्रोटीन सामने आया है जिस पर मलेरिया की दवा एचसीक्यू असरदार है। प्रोटीएज वायरस के अंदर पाए जाने वाले इंजाइम हैं, और दवा का इन पर असर दिखा है। शोध के तरीके का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि जीका वायरस को पनपने से रोकने के लिए हम प्रोटीएज नामक महत्त्वपूर्ण इंजाइम को निशाना बनाते हैं। यह इंजाइम पॉली प्रोटीन को प्रभावित करता है, जो वायरस के जीवित रहने और पैथेनोजेनेसिस के लिए चाहिए। प्रो. गिरि ने बताया कि जीका वायरस के मामले में व्यक्ति के अंदर वायरस की संख्या बढ़ने के लिए एनएस2बी-एनएस 3 प्रोटीएज का होना जरूरी है।
एनएस2बी-एनएस 3 प्रोटीएज को पनपने से रोकने वाले मॉलीक्यूल की पहचान के लिए प्रो. गिरी की टीम ने पहले एफडीए-स्वीकृत ड्रग लाइब्रेरी की हाईथ्रूपुट वर्चुअल स्क्रीनिंग की और पांच कंपाउंड की पहचान की, जिन्हें जीका वायरस प्रोटीएज के प्रति संवेदनशील देखा गया। पांच में एक कंपाउंड एचसीक्यू था। अपने एसीएस ओमेगा शोध निबंध में शोधकर्ताओं ने लिखा है कि स्वीकृत दवाओं का फि र से एक उपयोग तय करना अहम है, जिससे नई बीमारियों के वायरस को सक्रिय या निष्क्रिय किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि इस पद्धति से दवा विकास की समय अवधि और लागत कम होगी और यह दवा अधिक सुरक्षित होगी। इस स्क्रीनिंग में सबसे अहम पांच कंपाउंड की जांच की गई। उनका मॉलिक्यूलर डाइनामिक्स साइम्युलेशन किया गया। शोधकर्ता लिखते हैं कि विभिन्न एमीनो एसिड के अवशेष जीका वायरस के एनएस2बी-एनएस3 प्रोटीएज के सक्रिय हिस्से पर दवा के मॉलेक्यूल को स्थिर करते हैं।
अतिरिक्त विश्लेषण के लिए प्रो. गिरि ने कंप्यूटेशनल ड्रग की खोज के प्रयास और मॉलिक्यूलर डाइनामिक्स साइम्युलेशन के जरिए सत्यापन के आधार पर दवा के पांच मॉलीक्यूल से एचएचसीक्यू का चयन किया। शोधकर्ताओं ने जीका वाइरस के प्रोटीएज जीन की संरचना का प्रारूप और क्लोन तैयार किया और उसके एनएस2बी-एनएस3 प्रो.टीएज इंजाइम को अलग किया। एचसीक्यू ने इंजाइम गतिविधि को रोका किया, जिससे पता चलता है कि एचसीक्यू जीका वायरस संक्रमण की संभावित दवा हो सकती है। अगले चरण में शोधकर्ताओं ने जीका वायरस के ट्रोपोब्लास्ट संक्रमित सेल्स का एचसीक्यू से उपचार किया और पाया कि वायरस का प्रभाव बहुत कम हो गया था। इससे साफ है कि एचसीक्यू वायरस की वृद्धि रोकने में सक्षम हैं। एचएसक्यू जैसे मोलेक्यूल और प्रोटीएज जैसे महत्त्वपूर्ण वायरल इंजाइम की आपसी प्रतिक्रिया की बेहतर समझ से इस वायरस पर वार करने और होस्ट सेल्स में इनकी संख्या बढ़ने से रोकने वाली दवा का विकास करना आसान होगा।