पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में उसके पति को बरी करते हुए कहा कि अक्सर नशे में झगड़ा करना क्रूरता होता है। पर पत्नी को खुदकुशी के लिए उकसाना उस श्रेणी में नहीं आता। दरअसल, मुंबई निवासी मोहन केसरे को कोल्हापुर में एसिस्टेंट सेशंस जज ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 (खुदकुशी के लिए उकसाना) और 498 ए (पति या उसका रिश्तेदार महिला से क्रूरता करे) के तहत दोषी पाया था। जज ने उसे पांच साल कैद की सजा सुनाई थी।

केसरे ने उनके आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, केसरे शराब पीता था। उसे पत्नी सुशीला का चरित्र खराब होने की शंका थी, जिसे लेकर वह उसकी पिटाई करता था। रोज-रोज की मार-पीट से तंग आकर एक दिन पत्नी ने मिट्टी का तेल छिड़क कर खुद को आग के हवाले कर लिया।

घटना के फौरन बाद महिला को अस्पताल ले जाया गया, मगर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। कोर्ट ने सुशीला की बेटी की उस बात का संज्ञान लिया है, जिसमें उसने मां के पिता से झगड़े (अंतिम समय) के दौरान हुई बातें सुन ली थीं। जानकारी के अनुसार, केसरे उस दिन शराब के नशे में घर आया था और उसने सुशीला को क्रिकेट बैट (बल्ले) से पीटा था, जिसके बाद उसने आग लगा ली थी।

कोर्ट में जस्टिस एएम बदर ने कहा, “17 साल पुरानी शादी में शराब के नशे में पत्नी से ऐसे झगड़े हो सकता है कि क्रूरता हो। पर ये (झगड़े-विवाद) महिला को खुदकुशी करने को उकसाने के लिए काफी हों, यह भी जरूरी नहीं है।” कोर्ट ने इसी के साथ पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप से बरी किया, मगर धारा 498 ए के तहत उसके दोष को कायम रखा। केसरे को इसके तहत दो साल की कैद की सजा सुनाई गई।