महिला सुरक्षा के तमाम दावों के बीच महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों के दफ्तरों से एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। राज्य में मुख्यमंत्री समेत किसी भी मंत्री के दफ्तर में यौन शोषण से जुड़ी शिकायतों के समाधान के लिए कमेटी नहीं बनी है। इसका खुलासा इंडियन एक्सप्रेस की ओर से लगाई गई एक आरटीआई में हुआ। जानकारी के मुताबिक, खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि ऐसी कोई आंतरिक समिति नहीं है। उल्लेखनीय है कि महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौनशषण (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत 10 या उससे अधिक कर्मचारियों वाले दफ्तरों में ऐसी समिति का होना अनिवार्य है। महाराष्ट्र मुख्यमंत्री सचिवालय में 110 कर्मचारी हैं, जिनमें 20 महिलाएं शामिल हैं। इसके अलावा सभी मंत्रियों के पास भी 10 से ज्यादा कर्मचारी कार्य करते हैं।
ऐसे हुआ खुलासा : 10 दिसंबर 2018 को लगाई गई RTI का जवाब देते हुए जन सूचना अधिकारी गीता यादव ने कहा, ‘‘अलग से कोई समिति नहीं बनाई गई है। सामान्य प्रशासन की डेस्क-21 इस तरह के मामलों को देखती है और संबंधित विभाग से जानकारी लेने के बाद उचित कार्रवाई करती है।’’ अधिकारियों के मुताबिक, मुख्यमंत्री सचिवालय ने सामान्य प्रशासन विभाग और महिला-बाल विकास विभाग से इस पर बात की है।
हर दफ्तर में समिति बनाना जरूरी : एक और RTI के जवाब में सामान्य प्रशासन विभाग ने बताया, ‘‘मंत्री और उनका स्टाफ स्थायी नहीं होता। जब तक मंत्री है, तब तक स्टाफ है और उनका कार्यकाल खत्म होते ही स्टाफ बदल जाता है। ऐसे में यदि किसी भी अधिकारी के खिलाफ पद पर रहने के दौरान कोई शिकायत मिलती है तो उस पर उनके संबंधित मूल विभाग द्वारा कार्रवाई की जाती है। यह प्रक्रिया सिर्फ सिर्फ यौन शोषण ही नहीं, बल्कि हर तरह के मामले में अपनाई जाती है। विभाग के एक अधिकारी के मुताबिक, हर दफ्तर के प्रमुख को इस तरह की समितियां बनानी होती हैं। कानून एवं न्याय से जुड़े विभाग के अधिकारियों का कहना है कि प्रावधान के मुताबिक मंत्रियों के दफ्तर में भी आंतरिक समिति का होना जरूरी है।
मंत्रियों की प्रतिक्रियाः स्कूली शिक्षा, उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री विनोद तावड़े से जब समिति के संबंध में बातचीत की गई तो उन्होंने कहा, ‘हमारे यहां सिर्फ दो महिला कर्मचारी हैं, 10 नहीं।’ वहीं, शिवसेना के कोटे से मंत्री बने एकनाथ शिंदे बोले कि मेरे ऑफिस में कोई महिला कर्मचारी नहीं है। ऐसे में शोषण का सवाल ही कहां उठता है? साथ ही, उन्होंने कहा कि प्रावधान की समीक्षा करके जरूरी कदम उठाए जाएंगे। वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने भी एक भी महिला स्टाफ नहीं होने का दावा किया तो श्रम मंत्री संभाजी पाटिल ने जरूरी कदम उठाने की बात कही।
