बच्चों की शिक्षा की ललक के आगे कई बार बाधाओं को बौना होते देखा गया है। ऐसा ही कुछ महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के सरकारी स्कूल में देखने को मिल रहा है। दूरदराज इलाके में स्थित इस स्कूल के बच्चे भले ही कम बुनियादी सुविधाओं के साथ जीते हैं लेकिन रोबोटिक्स और प्रौद्योगिकी सीखने की ललक से कई बच्चों ने जापानी भाषा सीखनी शुरू कर दी है।

सरकारी स्कूल ने पिछले साल सितंबर में चौथी से आठवीं तक के बच्चों के लिए एक विदेशी भाषा के चयन का विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया। जिसके तहत स्कूल के 70 बच्चों ने जापानी भाषा के अध्ययन का चुनाव किया। इंटरनेट की मदद से चल रही क्लासों और अनुवाद की सहायता से बच्चों ने काफी प्रगति की है। स्कूल के शिक्षक दादासाहेब नवपुत ने बताया, ‘‘ हैरानी की बात है, उनमें से अधिकांश ने कहा कि वे रोबोटिक्स और प्रौद्योगिकी में रुचि रखते थे और जापानी भाषा सीखने चाहते हैं।’’

साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि जापानी भाषा सिखाने के लिए कोई उचित पाठ्यक्रम सामग्री और पेशेवर मार्गदर्शन नहीं होने के बावजूद, स्कूल प्रशासन इंटरनेट पर वीडियो और अनुवाद अनुप्रयोगों से जानकारी इकट्ठा करने में कामयाब रहा। विद्यालय की इस शानदार पहल के बारे में जानने के बाद जिले के भाषा विशेषज्ञ सुनील जोगदेओ ने विद्यालय प्रशासन से संपर्क किया और अब वे बच्चों को जापानी भाषा पढ़ा रहे हैं।

जोगदेओ ने कहा, ‘‘ मैंने जुलाई से 20 से 22 सत्र आयोजित किए हैं। बच्चे प्रतिबद्ध हैं और सीखना चाहते हैं। थोड़े समय में उनका काफी कुछ सीख लेना कमाल है।’’

वहीं इस प्रक्रिया में कुछ छात्रों के पास स्मार्टफोन न होने की वजह से कुछ अड़चनें आ रहीं हैं। जिसके कारण स्कूल ने ‘विश्वमित्र’ पहल को प्रारंभ किया जिसके तहत बच्चे ऑनलाइन क्लास में जो भी सीखते हैं वो अपने साथी छात्रों को भी सिखाते हैं।

औरंगाबाद जिला परिषद के शिक्षा विस्तार अधिकारी रमेश ठाकुर ने बताया कि स्कूल में 350 से अधिक छात्र हैं, जिनमें से 70 जापानी भाषा सीख रहे हैं। उन्होंने बताया कि इसका उद्देश्य छात्रों को अंतरराष्ट्रीय स्तर की शिक्षा प्रदान करना है।