एमपी में कांग्रेस पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। एमपी कांग्रेस इस हार पर मंथन करने की बात कर रही है लेकिन एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से दावा किया गया है कि पार्टी आलाकमान ने उन्हें MPCC अध्यक्ष पद छोड़ने के लिए कहा है। मध्य प्रदेश में जीत के दावे कर रही कांग्रेस को महज 66 सीटें जबकि बीजेपी को 163 सीटें मिली हैं। वहीं न्यूज एजेंसी PTI की तरफ से दी गई जानकारी के अनुसार, कमलनाथ आज पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात कर सकते हैं। इस दौरान वह मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी चीफ पद से इस्तीफा दे सकते हैं।
कमलनाथ को था जीत का यकीन
मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को यकीन का था कि इस बार उनकी पार्टी शिवराज सरकार को सत्ता से बाहर कर देगी। रिजल्ट वाले दिन से पहले एमपी में कांग्रेस की तरफ से जीत के दावे करने वाले पोस्टर लगा दिए गए थे। इनमें कमलनाथ की विजय की बातें हो रहीं थीं। हालांकि जब रुझान आए तो कांग्रेस के पैरों तले जमीन खिसक चुकी थी।
एमपी में क्यों हारी कांग्रेस? जानिए बड़ी वजह
- मामा की अपील – कांग्रेस एमपी में जहां एंटी इनकंबेंसी के भरोसे थी, तो वहीं राज्य में सीएम के तौर पर पहचाने जाने वाले शिवराज सिंह चौहान ने पूरी ताकत लगा दी। उन्होंने प्रचार के दौरान लाडली बहना योजना पर बात की। कहा जा रहा है कि एमपी में बीजेपी के लिए यही गेम चेंजर है।
- कमलनाथ प्रभावी चेहरा नहीं – एमपी में एक तरफ जहां बीजेपी ने एंटी इनकंबेंसी को कम करने के लिए शिवराज को चेहरा घोषित नहीं किया तो वहीं दूसरी तरफ पहले दिन से यह क्लीयर था कि कांग्रेस के जीतने पर कमलनाथ ही सीएम होंगे। वह वोटर्स को मोबलाइज करने में सफल नहीं हुए। छिंदवाड़ा के बाहर उनका कोई खास प्रभाव नहीं दिखाई दिया।
- सॉफ्ट हिंदुत्व भी काम न आया – एमपी में कांग्रेस पार्टी लगातार सॉफ्ट हिंदुत्व का कार्ड खेलती नजर आई। उसने चुनाव से पहले कई हिंदू नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया। कांग्रेस नेता जगह-जगह मंदिर में पूजा करने भी नजर आए लेकिन वो फिर भी बीजेपी को नुकसान न कर पाई।
- सिंधिया फैक्टर – कांग्रेस पर सिंधिया फैक्टर भी भारी पड़ा। ग्वालियर – चंबल क्षेत्र की 34 सीटों में से भाजपा 18 जीत गई। जबकि कांग्रेस का ग्राफ गिर गया। कांग्रेस को 2018 में 26 सीटें मिली थीं, वह 16 सीटों पर आ गई।