मेडिकल के 634 छात्रों को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश में व्यापम परीक्षा के जरिए एमबीबीएस पाठ्यक्रम में इनका प्रवेश रद्द करने को सोमवार को सही ठहराया। अदालत ने अनुचित साधनों को अपनाए जाने की उनकी गतिविधि को ‘कपटपूर्ण कृत्य’ करार दिया। मुख्य न्यायधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाले तीन न्यायधीशों के पीठ ने कहा कि इन छात्रों की कार्रवाई ‘अस्वीकार्य’ पाई गईं और संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत इसमें कोई हस्तक्षेप वांछित नहीं है। पीठ ने कहा कि इन आवेदकों की कार्रवाई अस्वीकार्य व्यवहार पर आधारित पाई गर्इं और यह कानून के राज का संपूर्ण हनन है। उनकी कार्रवाई कपट का कृत्य है और धार्मिक व सामाजिक व्यवस्था पर हमला है। हमारे विचार से व्यक्तिगत या सामाजिक लाभ के लिए राष्ट्रीय चरित्र की बलि नहीं दी जा सकती। यदि हम नैतिकता और चरित्र की कसौटी पर एक राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं और यदि हमारा संकल्प एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण का है जहां केवल कानून का राज हो तब हम सुझाए गए सामाजिक लाभ के लिए अपीलकर्ताओं के दावे को स्वीकार नहीं कर सकते, हम संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत किसी तरह का लाभ अपीलकर्ताओं को प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं।

पीठ ने अपने फैसले में कहा कि मौजूदा मामला बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी उजागर करता है। अपनाई गई यह प्रक्रिया यदि स्वीकार ली जाती है तो यह न केवल लापरवाही होगी, बल्कि गैरजिम्मेदारी भी होगी। इससे अन्य लोग भी यही रास्ता अपनाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। व्यापम से जुड़े मामलों पर न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर और न्यायमूर्ति एएम सप्रे के पीठ ने एमबीबीएस में प्रवेश के लिए इच्छुक इन चात्रों पर अनुचित साधन अपनाने के दोष के संबंध में सहमति जताई थी, लेकिन सजा को लेकर उनके अलग-अलग मत थे जिसके बाद इस मामले को तीन न्यायधीशों की पीठ के सुपुर्द कर दिया गया था। इससे पूर्व सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा वाली तीन न्यायधीशों बाकी के पीठ ने इस मामले को न्यायमूर्ति चेलमेश्वर और सपे्र की पीठ के पास यह स्पष्टीकरण मांगते हुए वापस भेज दिया था कि क्या उसे संपूर्ण मामले को नए सिरे से देखना होगा या फिर सजा की मात्रा तक खुद को सीमित रखना होगा। मेडिकल के विद्यार्थियों ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा 2014 में दिए गए दो फैसलों को चुनौती दी थी। इस फैसले में हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश पेशेवर परीक्षा बोर्ड जिसे व्यापम के तौर पर भी जाना जाता है, द्वारा 2008 और 2013 के बीच कराई गई प्रवेश परीक्षाओं के नतीजे रद्द किए जाने के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी थी।