मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार परिवारवाद के आरोपों पर एक बार फिर सवालों के घेरे में है। ताजा मामला राज्य सरकार में स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी की पत्नी नीरा चौधरी से जुड़ा है। दरअसल, मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग की ओर से एक आदेश जारी हुआ है। इसमें कहा गया है कि भोपाल की जिला स्वास्थ्य अधिकारी नीरा चौधरी को क्षेत्रीय कार्यालय में संयुक्त संचालक नियुक्त किया गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि नीरा इस पद के लिए अनुभव के मामले में कई वरिष्ठ डॉक्टरों से पीछे थीं। इतना ही नहीं 2017 में स्वास्थ्य विभाग ने प्रथम श्रेणी डॉक्टरों की जो अंतिम वरिष्ठता सूची जारी की थी, उसमें 1042 वरिष्ठ डॉक्टरों में नीरा का नाम तक नहीं था।
क्या है विवाद की जड़?: बता दें कि अगर नियमानुसार चला जाए तो संयुक्त संचालक पद पर सिर्फ प्रथम श्रेणी अधिकारी को ही पदस्थ किया जा सकता है। वरिष्ठता के लिहाज से बात की जाए, तो इस क्रम में पहले उप संचालक और उससे नीचे मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMHO) का नंबर आता है। नीरा सिर्फ एक जिला स्वास्थ्य अधिकारी थीं। उनके अलावा भोपाल में ही 70 से ज्यादा प्रथम श्रेणी डॉक्टर हैं, जो कि डिप्टी डायरेक्टर पद पर थे। अब इसे लेकर राज्य में विवाद पैदा हो गया है। नीरा की नई नियुक्ति पर कई वरिष्ठ डॉक्टरों में असंतोष का भाव है। हालांकि, स्वास्थ्य मंत्री की ओर से इस मामले में अब तक कोई बयान नहीं आया है।
कांग्रेस ने उठाए सवाल: इस विवाद पर कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अरुण यादव ने तंज कसा है। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से लिखा, “अंधा बांटे रेवड़ी, फिर अपने-अपने को दें। बहुत से सीनियर डॉक्टर्स को बायपास करते हुए स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी की पत्नी डॉ. नीरा चौधरी को संयुक्त संचालक बना दिया।” अपने अगले ट्वीट में उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री पर तंज कसते हुए कहा, “सब प्रभु की कृपा है।”
प्रदेश के आधे से ज्यादा जिलों में वरिष्ठता का नियम दरकिनार: मध्य प्रदेश के 52 जिलों में से 34 ऐसे जिलें है, जहां पिछले एक साल में सीनियर डॉक्टरों के बजाय जूनियर को सीएमएचओ बनाया गया है। इनमें शाजापुर, खरगौन, बड़वानी, रतलाम, धार, छतरपुर, दमोह, कटनी, रीवा, शहडोल समेत अन्य जिले शामिल हैं।

