जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की कुलपति शांतिश्री धुलपुड़ी के एक बयान ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। उनका कहना है कि भगवान ऊंची जाति के नहीं हैं। उनके अनुसार, कोई ब्राह्म्ण शमशान में नहीं बैठ सकता, इसलिए भगवान शिव अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के हो सकते हैं।
उन्होंने कहा, “भगवान शिव के गले में सांप रहता है, शरीर पर कम कपड़े होते हैं और वह शमशान में बैठकर तपस्या करते हैं इसलिए वह एससी या एसटी हो सकते हैं। मुझे नहीं लगता कि कोई ब्राह्मण शमशान में बैठ सकता है।”
उन्होंने कहा कि मनुष्य जाति के विज्ञान के अनुसार, देवी-देवता उच्च जाति के नहीं हो सकते हैं। वीसी ने यह भी कहा कि मनुस्मृति के अनुसार सभी महिलाएं शुद्र हैं। महिलाओं को जाति अपने पिता या पति से मिलती है। उन्होंने कहा कि हमें देवताओं की उत्पत्ति को मनुष्य जाति के विज्ञान के हिसाब से जानना चाहिए। कोई भी भगवान ब्राह्मण नहीं है, सबसे ऊपर क्षत्रिय हैं।
उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर बवाल खड़ा हो गया है और लोग उनको निशाने पर लेते हुए हमला कर रहे हैं। लकी गौर नाम के एक ट्विटर यूजर ने कहा कि बहुत ही आदर के साथ आपसे कहना चाहता हूं कि आप सिर्फ एक वीसी हैं, कोई महानुभव नहीं हैं। मेरे ख्याल से आप अपनी नौकरी से खुश नहीं हैं।
अर्जुन शर्मा नाम के एक यूजर ने लिखा, “जो भगवान को जाति दे रहे हैं, उन्हें इस्लाम या क्रिश्चन धर्म धारण कर लेना चाहिए। कोई हनुमान जी को एससी/एसटी बता रहा है, तो कोई भगवान शिव को एससी/एसटी बता रहा है। कम से कम भगवान को तो अपनी राजनीति से दूर रखो।”
एक यूजर Ag_Kickass ने कहा, “हमेशा इस तरह के मामले जेएनयू में ही क्यों होते हैं? इस यूनिवर्सिटी में जरूर कुछ गलत है।” जेएनयू कुलपति के इस बयान पर कुछ यूजर्स ने नूपुर शर्मा का भी मुद्दा उठाया है और सवाल किया कि क्या कुलपति भी उस सबका सामना करेंगी, जिनका सामना नूपुर शर्मा को करना पड़ा था। एक यूजर वोल्फी ने इस पर कहा कि सोचो अगर कुलपति पैगंबर को लेकर इस तरह की टिप्पणी करतीं! Msrksl नाम के एक यूजर ने कहा कि परमात्मा की कोई जाति, कोई धर्म नहीं होता है। यह सब सिर्फ हमारे दिमाग में है।