इस गाँव की सड़क एक दम चिकनी है और इसके बीच में सफ़ेद निशान भी बने हैं। इससे पता चलता है की इसे अभी-अभी पेंट किया गया है। सड़क के दोनों तरफ हरे भरे खेत हैं। गांव के प्रवेश द्वार पर, एक आईटीआई है, और एक रेफरल अस्पताल है। यहां एक साइनपोस्ट लगा हुआ है जो शूटिंग रेंज का दावा करता है।

नालंदा जिले में स्थित कल्याण बिगहा गाँव बिहार के मुख्य मंत्री नीतीश कुमार का गाँव है। हरनौत विधानसभा क्षेत्र जितना बड़ा है, उतना ही बड़ा नीतीश कुमार का गढ़ है। तीन प्रयास के बाद यहीं से उन्होने 1985 में अपना पहला चुनाव जीता था। वहीं 1995 में फिर से जीत हासिल की थी। पिछले तीन कार्यकालों से यहां जेडीयू के हरिनारायण सिंह जीतते आए हैं। इस बार भी हरिनारायण को यहीं से टिकट मिला है। यहां चुनाव 3 नवंबर को दूसरे चरण में होने है।

गुरुवार सुबह, सड़क के ठीक बगल में एक मंदिर के पास गांव के छह बुजुर्गों बैठकर राजनीति पर चर्चा कर रहे थे। वे सभी कुर्मी हैं, उनका मानना है कि नीतीश को छोड़कर किसी और को वोट देने वाला व्यक्ति मूर्ख ही होगा। उमेश कुमार ने कहा “उसने इस गाँव के लिए क्या नहीं किया है? सड़क है, एक बड़ा सरकारी स्कूल है, एक आईटीआई है, एक अस्पताल है।”

उमेश ने कहा “हमें याद है कि उनके मुख्यमंत्री बनाने से पहले रोड नहीं थे। जिसके चलते हमें मरीजों को चारपाई से पैदल लेजाना पड़ता था। हमें अगर सांप काट लेते थे तो यहां से 4 किलोमीटर दूर हरनौत में भी इसके इलाज की गारंटी नहीं थी। यह विकास सभी के लिए है। कल्याण बिगहा का पूरा गाँव हमेशा नीतीश कुमार को वोट देता रहेगा।”

वहीं से दो सौ मीटर की दूरी पर पवन पासवान हैंडपंप पर पानी भर रहे थे। कुछ महीने पहले तक वे यहां से 60 किमी दूर पटना के मीठापुर में दिहाड़ी मजदूर थे। लेकिन काम नहीं होने की वजह से वे वापस अपने गांव लौट आए हैं। पासवान ने कहा “गरीबों की इतनी बुरी हालत कभी नहीं थी। यहां तक की गांव में भी उनके पास कोई काम नहीं है।” कुर्मी बुजुर्गों की तरफ इशारा करते हुए पासवान बोले “हमने हमेशा नीतीश कुमार को वोट दिया, लेकिन इस बार पासवान एलजेपी को वोट देने पर विचार कर रहे हैं। यहां तक कि इस बार दलित भी नीतीश को वोट नहीं करेगा। वे भले यहां से सीट जीत जाये लेकिन उनको हमारा वोट नहीं मिलेगा।”

यहां से 10 किलोमीटर दूर तेलमर गाँव में रहने वाले नरेश रविदास कहते हैं कि कुछ लोग अभी भी नीतीश कुमार को वोट दे सकते हैं क्योंकि यह उनकी सीट है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में, कुमार ने गरीबों के लिए काम करना बंद कर दिया है। रविदास का कहना है कि रोड बनाया लेकिन रोड पर गाड़ियां चलती हैं इससे हमें क्या मिला?

रविदास ने कहा ” सब्जियों की कीमतें बढ़ गई हैं। आलू 80 रुपये किलो है। क्या कोई गरीब आदमी खरीद सकता है? वे कहते हैं कि उन्होंने पांच किलो राशन और 1 किलो दाल दी। मेरे घर में 9 लोग हैं, लेकिन केवल 5 लोगों को मिला। बताओ, ये कब तक चलेगा? नीतीश कुमार ने किताबें दिलवाईं, लेकिन हमारे स्कूल में शिक्षक नहीं आते हैं। मैं दावे से कह सकता हूं यहां का कक्षा 9वीं का छात्र अपना नाम नहीं लिख सकता है।”