अभिषेक साहा

असम के तिनसुकिया जिले में वर्ष 1994 में पांच नागरिकों के फेक एनकाउंटर मामले में कोर्ट मार्शल द्वारा शनिवार (13 अक्टूबर) को एक मेजर जनरल सहित सात सैनिकों को उम्रकैद की सजा सुनाई। मारे गए सभी पांच नागरिक एक प्रतिष्ठित छात्र संगठन से जुड़े हुए थे। एक सूत्र ने बताया कि इस आदेश को अभी तक उच्च अधिकारियों द्वारा मंजूरी नहीं दी गई है। उन्होंने कहा, “दीनजन में आयोजित जनरल कोर्ट मार्शल में 1994 एनकाउंटर केस का फैसला सुनाया गया है। हालांकि, इस फैसले की सक्षम प्राधिकारियों द्वारा पुष्टि की जानी चाहिए और इसमें 2 से 3 महीने लग सकते हैं। यह फैसला तीन ऑफिसर, चार जूनियर कमीशन ऑफिसर और अन्य रैंक के विरुद्ध है।”

प्रबिन सोनोवाल, प्रदीप दत्ता, देबजीत विश्वास, अखिल सोनोवाल और भाबेन मोरन नामक पांच युवाओं को कथित तौर पर 18 फरवरी 1994 की रात सेना के जवानों द्वारा ले जाया गया था। 23 फरवरी को जंगल से उनके शव बराद हुए थे। सोनोवाल ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (एएएसयू) के ऑफिस कर्मचारी थे और वहीं अन्य चारों भी इस संगठन से जुड़े हुए थे।

इस केस में याचिकाकर्ता ऑल असम स्टूडेंट यूनियन के तत्कालीन उपाध्यक्ष जगदीश भुयन ने कहा था कि उन्होंने 22 फरवरी को गौहाटी उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसके बाद उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि गिरफ्तार किए गए लोगों को मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाए। भुयन जो कि वर्तमान में असम पेट्रोल केमिकल लिमिटेड (असम सरकार का सार्वजनिक उपक्रम) के चेयरमैन हैं, ने कहा, “अगले दिन जब अगवा सभी पांच लोगों का शव मिला, आर्मी ने दावा किया कि वे चरमपंथी थे। मैंने एक बार फिर हाईकोर्ट में याचिका दायर की।इसके बाद कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दिए थे।”

भुयन ने कहा कि सीबीआई ने कोर्ट मार्शल की सिफारिश की और हाईकोर्ट ने उसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में गया और अंत में कोर्ट मार्शल किया गया। भुयन ने कहा, “यह आदेश में वास्तव में महत्वपूर्ण है। आदेश से यह साफ तौर पर प्रतीत होता है कि भारतीय न्यायपालिका, भारतीय सेना का अनुशासन और हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था कितनी मजबूत है। यह आदेश दिखाता है कि देश में से कोई भी न्याय प्राप्त कर सकता है। मैं उच्च न्यायालय, सुप्रीम कोर्ट और भारतीय सेना का आभारी हूं।”