केरल में विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीनों का समय रह गया है। हालांकि, इससे पहले ही राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे सभी पार्टियों के लिए संकेत के तौर पर आए हैं। जहां CPM के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) गठबंधन के लिए यह चुनाव बेहतरीन साबित हुए हैं, वहीं कांग्रेस नीत यूनाइटेड डेमोक्रेट फ्रंट (UDF) को इसमें नुकसान हुआ है। इस बीच पिछले कुछ चुनावों में केरल में एक भी सीट न जीत पाने वाली भाजपा ने इस चुनाव में कई जगहों पर अपना खाता खोला है।
केरल में स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए खासा निराशाजनक हैं। दरअसल, विपक्ष में शामिल पार्टियों ने लेफ्ट सरकार के गोल्ड स्मग्लिंग केस को मुद्दा बनाते हुए अभियान चलाया था। दरअसल, इस पूरे मामले में राज्य के सीएम पिनरई विजयन के कई मौजूदा और पूर्व करीबियों के नाम सामने आए थे। इसके अलावा सीपीएम के राज्य सचिव कोडियेरी बालकृष्णन के बेटे के ड्रग्स संबंधी मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ्तार होने के बाद विपक्ष का अभियान और तेज हुआ था। इसके बावजूद एलडीएफ की सीटें बढ़ना यूडीएफ के लिए नुकसानदायक रहा।
एलडीएफ ने छह नगर निगम में से पांच पर कब्जा जमाया, जबकि पिछले चुनाव में दो सीटें जीतने वाले एलडीएफ गठबंधन को एक ही सीट मिली। हालांकि, नगरपालिकाओं के चुनाव में यूडीएफ को थोड़ी बढ़त मिली और गठबंधन ने 86 में से 45 सीटों पर जीत हासिल की। इसके अलावा वामदलों ने भी 35 सीटें जीतीं। भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए ने दो सीटों पर कब्जा जमाया।
वाम दलों का सबसे बड़ा फायदा जिला पंचायत चुनाव में हुआ, जहां गठबंधन को 14 में से 10 सीटें मिली। पिछली बार दोनों (LDF और UDF) के पास 7-7 सीटें थीं। ब्लॉक पंचायत की 152 सीटों में भी लेफ्ट ने 104 और यूडीएफ ने 44 सीटों पर जीत हासिल की। इसके अलावा 941 ग्राम पंचायतों में एलडीएफ ने बड़ा फायदा पाते हुए 514 सीटों पर जीत हासिल की, जबकि यूडीएफ को 377 सीटें ही मिली। एनडीए ने इसमें 22 ग्राम पंचायतों में जीत हासिल की।
इन नतीजों पर विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथाला ने कहा कि लेफ्ट पार्टी के भ्रष्टाचार स्कैंडल के खिलाफ उभरे सार्वजनिक आक्रोश का असर इस चुनाव में ठीक से नहीं दिखा। हालांकि, उन्होंने गठबंधन के बचाव में तर्क दिया कि यूडीएफ ने 2015 का प्रदर्शन ही दोहराया है और पार्टी का सपोर्ट बेस अभी भी सलामत है।
स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजे केरल के सीएम पिनरई विजयन के लिए काफी अहम हैं, जिन्हें पिछले ही साल लोकसभा चुनाव में 20 में से महज एक सीट पर ही जीत मिली थी। इसके अलावा बेटे के ड्रग्स और मनी लॉन्ड्रिंग केस में बालकृष्णन को छुट्टी तक पर जाना पड़ा था। वैसे तो विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकाय चुनावों के वोटिंग पैटर्न में काफी फर्क है, लेकिन इस बार इन चुनावों को विधानसभा चुनावों का जनमत माना जा रहा है।
इन दोनों दलों के अलावा भाजपा के लिए राज्य में यह चुनाव कुछ खास अहमियत वाला नहीं रहा। पार्टी ने कई सीटों पर जीत जरूर हासिल की है, पर तिरुवनंतपुरम में हार और कुछ अन्य जगहों पर कड़े मुकाबले के बावजूद जीत न दर्ज कर पाने से भाजपा की कांग्रेस को कमजोर करने की योजनाओं पर पानी फिरा है। जहां एलडीएफ ने कोट्टयम, इदुक्की और पथनमथिट्टा जिले में केरल कांग्रेस (मनी) के आने का फायदा उठाया वहीं भाजपा ने भी इस स्थिति का लाभ लिया और कोट्टयम में तो पार्टी आठ सदस्यों के साथ किंगमेकर की भूमिका में आ गई।