कोलकाता के एक रेस्टोरेंट मालिक को सर्विस चार्ज वसूला काफी महंगा पड़ गया है। दरअसल सर्विस चार्ज कस्टमर की मर्जी पर है, वो दे भी सकता है, और नहीं भी। रेस्टोरेंट, कस्टमर पर इसे जबरदस्ती नहीं थोप सकता है और रेस्तरां ऐसा नहीं करता है तो वो कानून का उल्लघंन है, इसी के लिए कलकत्ता के रेस्टोरेंट पर मुआवजे के साथ पैसे वापस करने का आदेश दिया है।

कोलकाता उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने सोमवार को कहा कि रेस्तरां एक ग्राहक पर जबरन सेवा शुल्क नहीं लगा सकते हैं, इसलिए एक रेस्तरां को ग्राहक से वसूले गए सेवा शुल्क को मुआवजे की राशि के साथ वापस करने का निर्देश दिया है। बार और बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, अध्यक्ष स्वपन कुमार महंती और सदस्य अशोक कुमार गांगुली की पीठ ने फैसला सुनाया कि केंद्र सरकार द्वारा जारी फेयर ट्रेड प्रैक्टिस के दिशानिर्देशों के अनुसार रेस्तरां बिल पर सेवा शुल्क निर्धारित करना पूरी तरह से स्वैच्छिक है और अनिवार्य नहीं है।

आदेश में कहा गया है- “ओपी को भारत सरकार द्वारा जारी उपभोक्ताओं से सेवा शुल्क वसूलने से संबंधित दिशा-निर्देशों के बारे में पता होना चाहिए, जो अन्य बातों के साथ-साथ यह निर्धारित करता है कि होटल और रेस्तरां बिलों पर सेवा शुल्क पूरी तरह से स्वैच्छिक है और अनिवार्य नहीं है”।

इसलिए, आयोग ने माना कि शिकायतकर्ता से सेवा शुल्क के भुगतान पर जोर देने वाले रेस्तरां का कार्य अवैध, दुर्भावनापूर्ण और कानून के विपरीत था। मिली जानकारी के अनुसार एक शख्स ने 2018 के अंत में अपने कुछ दोस्तों के साथ याआचा होटल कोलकाता में डिनर किया था। बार और बेंच की रिपोर्ट में कहा गया है कि जब डिनर का बिल आया तो उसमें सर्विस टैक्स लगा हुआ था। इसे वापस लेने के लिए जब शख्स ने कहा, तो रेस्तरां के प्रबंधक ने कहा कि यह शुल्क अनिवार्य है और इसका भुगतान करना पड़ेगा।

तब विवाद से बचने के लिए शख्स ने पैसे का भुगतान कर दिया और बाद में कंज्यूमर कोर्ट में इसके खिलाफ शिकायत करते हुए मुआवजे के रूप में 25 हजार रुपये की मांग की। जिसके बाद रेस्तरां को कानूनी नोटिस भेजा गया और इस मामले पर कंज्यूमर कोर्ट ने अब फैसला दिया है।

इसमें कहा गया है कि शिकायतकर्ता द्वारा पेश किए गए सबूत निर्विवाद हैं। इसलिए, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि रेस्तरां ने शिकायतकर्ता के खिलाफ एक अनुचित व्यापार व्यवहार किया था, और रेस्तरां को सेवा शुल्क पूरा वापस करने के साथ-साथ शिकायतकर्ता को 30 दिनों के भीतर मुआवजे और मुकदमेबाजी शुल्क के रूप में 13,000 रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया है।