कोलकाता के जिस ब्रिगेड परेड ग्राउंड में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सुप्रीमो और बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तमाम विपक्षी पार्टियों के साथ एनडीए के खिलाफ बिगुल फूंकेंगी, वह ग्राउंड लोकप्रियता मापने का सबसे बड़ा पैमाना रहा है। आजादी के बाद से इस मैदान में कई बड़ी रैलियां हो चुकी हैं, जिससे यह ग्राउंड कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह बना। इसी ग्राउंड में माकपा नेता ज्योति बसु को अटल बिहारी वाजपेयी से हाथ मिलाते देखा गया तो बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री मुजीब-उर-रहमान यहां भारत की शान में कसीदे पढ़ चुके हैं।
18वीं सदी में बना था यह ग्राउंड : जानकारों के मुताबिक, ब्रिगेड परेड ग्राउंड 18वीं सदी के दौरान पलासी के युद्ध में अंग्रेजों की बड़ी जीत के बाद बनाया गया था। इस जीत के बाद अंग्रेजों ने फोर्ट विलियम (अब भारतीय सेना की पूर्वी कमान का मुख्यालय) बनाने पर विचार किया। साथ ही, जंगलों को काटकर ब्रिगेड परेड ग्राउंड भी तैयार कराया। ब्रिगेड परेड ग्राउंड कोलकाता का सबसे बड़ा खुला मैदान है। ऐसे में राजनीतिक दल इसका इस्तेमाल शक्ति प्रदर्शन के लिए करते हैं। हालांकि, भीड़ कम जुटने पर राजनीतिक पार्टियों को शर्मिंदगी भी उठानी पड़ती है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़े एक नेता ने कहा था, ‘‘ब्रिगेड परेड ग्राउंड में उसी राजनीतिक पार्टी को सभा करनी चाहिए, जो कम से कम पांच लाख लोगों को जुटा ले। इससे कम लोग जुटेंगे तो सभा फ्लॉप मानी जाएगी।’’
1919 में हुई थी पहली जनसभा : बताया जाता है कि कई किलोमीटर में फैले इस मैदान में सबसे पहली जनसभा 1919 में हुई थी। इस सभा में चित्तरंजन दास समेत अन्य आंदोलनकारियों ने हिस्सा लिया था। आजादी के बाद फरवरी 1955 में सोवियत के प्रीमियर के सम्मान में ब्रिगेड परेड ग्राउंड में भव्य कार्यक्रम हुआ था। इसमें प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व तत्कालीन मुख्यमंत्री विधानचंद्र राय भी मौजूद थे। वहीं, 1972 में जब भारतीय सेना ने बांग्लादेश आजाद कराया तो वहां के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर-रहमान ने कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक जनसभा आयोजित की थी। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी मौजूद थीं।
फिदेल कास्त्रो भी दर्ज करा चुके मौजूदगी : ब्रिगेड परेड ग्राउंड में क्यूबा के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी व राजनीतिज्ञ फिदेल कास्त्रो भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा चुके हैं। वहीं, 90 के दशक में ज्योति बसु ने कांग्रेस के खिलाफ क्षेत्रीय पार्टियों को एकजुट करके इसी ग्राउंड में शक्ति प्रदर्शन किया था। उस कार्यक्रम में ज्योति बसु के साथ मंच पर अटल बिहारी वाजपेयी और जॉर्ज फर्नांडिस भी मौजूद थे।
यहां भीड़ जुटाना काफी चुनौतीपूर्ण : जानकार बताते हैं कि शुरू में यहां कभी-कभार ही जनसभा होती थी, क्योंकि बड़ी भीड़ जुटाना चुनौतीपूर्ण काम था। हालांकि, बाद में वाममोर्चा की सालाना सभा ब्रिगेड ग्राउंड में होने लगी। बताया जाता है कि जब भी यहां वाममोर्चा की जनसभा होती है, भारी भीड़ जुटती है। 2011 में सत्ता से बेदखल होने के बाद भी जब ब्रिगेड में सभाएं हुईं तो वाममोर्चा ने जबरदस्त भीड़ जुटाई। हालांकि, वे इस भीड़ को वोट में तब्दील नहीं कर पाए।
1992 में ममता ने यहां की थी पहली जनसभा : चुनावी विश्लेषकों की मानें तो ममता बनर्जी यूथ कांग्रेस की नेता थीं तो 1992 में उन्होंने ब्रिग्रेड परेड ग्राउंड में एक जनसभा करके माकपा की ‘मृत्यु का घंटा’ बजाया था। हालांकि, इसके बाद उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनाई और लंबे संघर्ष के बाद 2011 में वाममोर्चा को पश्चिम बंगाल की सत्ता से दूर कर दिया। इसके बाद से ममता बनर्जी भी ब्रिगेड परेड ग्राउंड में सालाना जलसा करती हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी भी ब्रिगेड ग्राउंड में चुनावी सभा को संबोधित कर चुके हैं। सियासत के तमाम बड़े व नामचीन चेहरों को बेहद करीब से देखने वाला यह मैदान एक बार फिर बड़ी सियासी घटना का गवाह बनने जा रहा है।
