उत्तरप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्ता के सिंहासन तक पहुंचाने के लिये पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की शुरू की गयी ‘खाट सभाओं’ की नवाचारी कवायद चर्चा में है। लेकिन पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल झाबुआ और अलीराजपुर जिलों में सियासी नेता पिछले कई दशकों से ऐसी सभाओं के जरिये चुनावी बेला में दूरस्थ क्षेत्रोें में जनजातीय समुदाय के मतदाताओं तक पहुंंच बनाते आ रहे हैं। झाबुआ और अलीराजपुर जिलों में खाट पर बैठकर आदिवासियों के साथ किये जाने वाले सीधे संवाद को ‘खाटला बैठकों’ के नाम से जाना जाता है। भीली बोली में खाट को ‘खाटला’ कहा जाता है।

दोनों जिलों में चुनावों के वक्त ‘खाटला बैठकें’ सियासी दलों की रणनीति का अहम हिस्सा होती हैं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सत्ता के गलियारों तक पहुंचने का रास्ता खासकर इन्हीं बैठकों से होकर गुजरता है। इस बात की ताजा मिसाल यह है कि रतलाम..झाबुआ लोकसभा सीट पर गत 21 नवंबर को हुए उप चुनाव के दौरान भाजपा और कांग्रेस ने आदिवासी मतदाताओं तक पहुंचने के लिये ऐसी सैकड़ों बैठकें की थीं।

अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित लोकसभा सीट के उप चुनाव में वरिष्ठ कांग्रेस नेता कांतिलाल भूरिया ने अपनी नजदीकी प्रतिद्वन्द्वी भाजपा उम्मीदवार व मौजूदा विधायक निर्मला भूरिया को 88,832 मतों से हराया था। यह सीट निर्मला के पिता और तत्कालीन भाजपा सांसद दिलीप सिंह भूरिया के निधन से खाली हुई थी।