केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राज्य की लेफ्ट सरकार द्वारा लाए गए उस अध्यादेश को मंजूरी दे दी है, जिसके तहत किसी अपमानित करने या धमकाने वाले पोस्ट पर पांच साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। राज्यपाल कार्यालय ने शनिवार को पुष्टि की कि केरल पुलिस ऐक्ट में धारा-118(ए) जोड़ने वाले अध्यादेश पर हस्ताक्षर हुए हैं। इसके तहत अभ अगर कोई व्यक्ति ऐसी सूचना भेजता है, जो कि अपमानित करने वाली हुई या किसी और व्यक्ति को धमकाने से जुड़ी हुई, तो उस पर पांच साल की जेल या 10,000 रुपए का जुर्माना या दोनों लगाए जा सकते हैं।
डर जताया जा रहा है कि नए अध्यादेश की वजह से केरल में अभिव्यक्ति की आजादी पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है और इससे पुलिस को प्रेस की आजादी को प्रतिबंधित करने में ज्यादा ताकत मिलेगी। मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने कहा था कि उनका यह फैसला सोशल मीडिया के बढ़ते दुष्प्रयोग और लोगों को निशाना बनाने की कुप्रथा के कारण लाया गया है।
केरल के एडवोकेट अनूप कुमारन, जिन्होंने 2015 में पुलिस ऐक्ट की धारा- 118(डी) के खिलाफ केस दायर किया था, ने कहा कि वे अध्यादेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर करेंगे। उन्होंने कहा, “सरकार दावा करती है कि धारा 118(ए) आम लोगों, खासकर महिलाओं को सोशल मीडिया में जारी अपशब्दों से सुरक्षित करने के लिए लाया गया है। लेकिन असल में यह नया कानून सरकार और अधिकारियों द्वारा खुद की आलोचना करने वालों के विरुद्ध इस्तेमाल किया जाएगा।”
बता दें कि अनूप कुमारन ने धारा 118(डी) के खिलाफ जो याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी, उस पर उन्हें जीत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब केरल पुलिस ऐक्ट की इस धारा को असंवैधानिक करार दे दिया था और इसे अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन करार दे दिया था। हालांकि, पिछले महीने राज्यपाल को अध्यादेश के लिए जो कैबिनेट प्रस्ताव भेजने का ऐलान किया गया था, उसमें साफ कहा गया था कि केरल हाईकोर्ट ने ही राज्य पुलिस को पहले नफरत वाले अभियानों और सोशल मीडिया पर हमलों के खिलाफ कदम उठाने के निर्देश दिए हैं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व वाली सरकार ने दावा किया है कि कोरोनावायरस के फैलने के बाद से सोशल मीडिया पर अपराध, फेक प्रोपेगंडा और नफरती बयानों में बढ़ोतरी हुई है और इससे निपटने के लिए मौजूदा कानून अभी पूरे नहीं हैं। लेफ्ट सरकार का कहना है कि चूंकि केंद्र सरकार ने अब तक सोशल मीडिया पर इन चीजों पर लगाम लगाने के लिए कोई फ्रेमवर्क नहीं लाई है, इसलिए पुलिस भी सोशल मीडिया के जरिए किए गए अपराधों को प्रभावी ढंग से रोकने में नाकाम रही है।