केरल उच्च न्यायालय ने गुरुवार को मौखिक रूप से कहा कि एक पुरुष और एक महिला के बीच संबंधों में खटास आने से पुरुष के खिलाफ बलात्कार का आरोप नहीं लगाया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि अब ऐसे उदाहरण हैं कि युवा पुरुष और महिलाएं एक साथ रह रहे हैं, रिश्तों का आनंद ले रहे हैं। अपनी शारीरिक और मानसिक अनुकूलता को समझने के बाद ही वे शादी करने का फैसला करते हैं।

अदालत ने कहा कि यदि उन्हें पता चलता है कि वे असंगत हैं, तो वे दोनों संबंध समाप्त कर सकते हैं। ऐसी स्थितियां हो सकती हैं जहां उनमें से एक रिश्ते में रहना पसंद करता है लेकिन दूसरा नहीं करता है। लेकिन ये सभी ऐसी स्थितियाँ नहीं हैं जो बलात्कार का मामला बन जाए। यह वादे का उल्लंघन हो सकता है, लेकिन वादे का उल्लंघन बलात्कार नहीं है।

अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि रिश्ते समय के साथ विकसित हुए हैं और आजकल युवाओं का रिश्तों के बारे में एक अलग दृष्टिकोण है। लेकिन यह तथ्य कि रिश्ता नहीं चल रहा है, प्रथम दृष्टया बलात्कार के आरोप को नहीं आकर्षित करता। रिश्तों में बदलाव के कारण इन जोड़ों के टूटने और दूसरों से शादी करने के बाद बलात्कार के आरोपों की संख्या बढ़ रही है।

वहीं कर्नाटक हाईकोर्ट ने शादी के झूठे वादे के तहत तीन साल की अवधि में एक महिला का यौन उत्पीड़न करने के आरोपी एक पुलिस कांस्टेबल को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति एचपी संदेश की एकल न्यायाधीश की पीठ ने आगे कहा कि निचली अदालत ने गिरफ्तारी से पहले जमानत के स्तर पर एक राय बनाने में गलती की थी। निचली अदालत ने कहा था कि चूंकि शिकायतकर्ता के सभी तीन वर्षों के लिए आरोपी के साथ शारीरिक संबंध थे, यह “सहमति संबंध” के बराबर है।

पीड़िता ने आईपीसी की धारा 323, 376, 420, 506 के तहत आरोपी को दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि पुलिस कांस्टेबल होने के नाते उससे वादा किया गया था कि वह उससे शादी करेगा और इस आड़ में उसने 2019 से फरवरी 2022 तक लगातार उसके साथ यौन शोषण किया।