बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर कमान संभालने वाले बसवराज बोम्मई की शुरुआत अच्छी रही। बोम्मई के मुख्यमंत्री बनने के बाद सितंबर में पहली बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कर्नाटक के दौरे पर पहुंचे थे। तब अमित शाह ने बोम्मई को 2023 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के चेहरे के तौर पर पेश किया था। अमित शाह ने कहा था, “बोम्मई ने छोटी-छोटी चीजों पर फोकस किया है। उन्होंने वीवीआईपी संस्कृति को नहीं अपनाया, दिल्ली में कर्नाटक को करीब से देखने वालों का मानना है कि बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने खुद को मजबूत किया है।”
बसवराज बोम्मई का हनीमून पीरियड बमुश्किल छह महीने तक चला। इस दौरान, भ्रष्टाचार से निपटने में उनमें इच्छाशक्ति की कमी और लंबित व नए प्रोजेक्ट्स पर बड़े स्तर पर निर्णय न ले पाने की शिकायतें आईं। सबसे ज्यादा आलोचनाएं इस बात को लेकर हुईं कि बोम्मई और उनके नेतृत्व ने दक्षिणपंथियों को उनके एजेंडे को भुनाने का लाइसेंस दे दिया। हाल ही में कर्नाटक में हिजाब विवाद, मुसलमानों के मंदिर के त्योहारों में शामिल होने पर रोक और फिर हलाल मीट विवाद को इसी कड़ी में जोड़कर देखा जा रहा है।
बसवराज बोम्मई के कर्नाटक के सीएम की कुर्सी तक पहुंचने की कहानी काफी अलग है। 61 वर्षीय बोम्मई ने जनता दल से राजनीतिक पारी की शुरुआत की थी। लिंगायत समुदाय से आने वाले बोम्मई के पिता और पूर्व सीएम एसआर बोम्मई वामपंथी नेता एमएन रॉय के कट्टरपंथी मानवतावादी आंदोलन के प्रबल समर्थक थे। वहीं, समाजवादी पृष्ठभूमि के बावजूद बोम्मई की छवि कट्टर दक्षिणपंथी नेता वाली बन गई है।
हालांकि, बोम्मई ने 1996-97 में राजनीति में कदम रखा, जब उन्हें जनता दल के तत्कालीन सीएम जेएच पटेल का पॉलिटिकल सेक्रेटरी नियुक्त किया गया। 2008 में अपने पिता के निधन से पहले तक उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था, क्योंकि उनके पिता अपने बेटे (बसवराज बोम्मई) को आगे बढ़ाने के लिए अपनी राजनीतिक साख का इस्तेमाल नहीं करना चाहते थे।
पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर बोम्मई को भाजपा के सबसे बड़े चेहरे और लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा ने पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया था। बोम्मई ने धारवाड़ क्षेत्र की सीमा से लगे शिगगांव को चुना जहां भाजपा का कोई नेता नहीं था। यहां से बोम्मई 2008, 2013 और 2018 में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।