ओमप्रकाश ठाकुर

जुजुराणा को आप जानते हैं? हिमाचल और इसके आसपास के लोग खूब परिचित हैं जुजुराणा से। इस पक्षी का नाम वेस्टर्न ट्रैगोपैन भी है। यह जितना खूबसूरत होता है, हाल के वर्षों में उतना दुर्लभ भी होता गया है। अस्तित्व पर ऐसा संकट आया है कि इनकी संख्या महज 5000 के आसपास रह गई है। पक्षियों में राजा के नाम से विख्यात जुजुराणा को बचाने के लिए हिमाचल ने दो कदम आगे बढ़ाए हैं। इसके दर्शन दुर्लभ होने का एक राज यह भी है कि यह बेहद शर्मिला होता है। हिमाचल ने इसे अपना राजपक्षी घोषित किया है। इसकी संख्या बढ़ाने के लिए शिमला से करीब 150 किलोमीटर दूर सराहन में एक पक्षीविहार व प्रजनन केंद्र भी खोला है। यह वेस्टर्न ट्रेगोपैन के कैपटिव प्रजनन के लिए दुनिया में एकमात्र प्रजनन केंद्र है। राष्ट्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने इस पक्षी के प्रजनन के लिए करीब पांच करोड़ का एक प्रोजेक्ट भी मंजूर किया है। 2007 में शुरू हुए इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य ही यह है कि इस पक्षी की आबादी का एक रिजर्व तैयार रखा जाए। पहले इस बाबत कम सफलता मिली लेकिन मौजूदा समय में इस केंद्र में 33 पक्षी हैं। सबसे बड़ी चुनौती इन पक्षियों को दोबारा जंगलों में इनके सहज आश्रयस्थलों तक ले जाना है।

वनमंडलाधिकारी कुनाल अंगरिश कहते हैं कि इस पक्षी की जंगल में औसत आयु सात से आठ साल है। जबकि यहां पर यह सुरक्षित और संरक्षित हैं। ऐसे में उनके प्रजनन केंद्र में सबसे ज्यादा उम्र के पक्षी 12 से 13 साल के हैं। उन्होंने कहा कि यहां पैदा हुए पक्षियों को अभी जंगलों में छोड़ने की दिशा में काम नहीं किया गया है। सहमति यह बनी है कि पहले यहां इनकी तादाद बढ़ाई जाए। उसके बाद इस दिशा में काम किया जाए। उन्होंने कहा कि इन 33 पक्षियों में कुछ पूर्व में घायलावस्था में पकड़े गए पक्षी भी शामिल हैं।
इस पक्षी विहार और प्रजनन केंद्र के साथ की दारनघाटी वन्यजीव अभयारण्य और रूपी बावा वन्यजीव अभयारण्य हैं। लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके इस पक्षी को बचाने के लिए अंतरराष्टÑीय प्रकृति संरक्षण संघ ने इस पक्षी को लाल सूची में शामिल किया है।

बहरहाल, हिमाचल की ब्यास, सतलुज और रावी नदियों के जलग्रहण स्थल इस पक्षी के आश्रयस्थल बने हैं। मानव आबादी से दूर रहने वाले इस पक्षी के लिए इन नदियों पर बनने वाली पन विद्युत परियोजनाओं ने एक नया खतरा जरूर पैदा कर दिया है। सर्दियों में समुद्र तल से 2000 से 2800 मीटर और गर्मियों में 2400 से 3600 मीटर की ऊंचाई तक रहने वाले इस पक्षी को लेकर विज्ञानी भी मानते है कि इस बेहद खूबसूरत पक्षी को लेकर सबसे कम अध्ययन हुआ है।

यूनेस्को की धरोहर सूची में शुमार जिला कुल्लू के ग्रेटर हिमालयन नेशनल पार्क के ऊपरी हिस्सों में इस खूबसूरत पक्षी की संख्या दुनिया में अब तक की जानी गई तादाद में से सबसे ज्यादा पाई गई है। इस पक्षी की गणना करने की कोशिश भी की गई है। ग्रेटर हिमालयन नेशनल पार्क के मंडल वनाधिकारी कृपाशंकर कहते हैं कि रौला की ओर यह पिछले दिनों भी देखा गया है। अब यह यहां ज्यादा दिखने लगा है।