असद रहमान
Vikas Dubey Encounter: गैंगस्टर विकास दुबे मुठभेड़ की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनाए गए पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि विकास और उसके सहयोगियों के खिलाफ कोई भी जांच “निष्पक्ष” नहीं थी। रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों और वकीलों द्वारा कोई गंभीर विरोध भी दर्ज नहीं किया गया। पैनल ने कहा कि दुबे (Vikas Dubey) के क्रिमिनल रिकॉर्ड से संबंधित 21 मामलों की फाइल का पता भी नहीं लगाया जा सका, जबकि इसके लिए पर्याप्त समय दिया गया था।
पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि विकास दुबे और उसके साथियों को स्थानीय पुलिस और अधिकारियों का संरक्षण प्राप्त था। रिपोर्ट में ऐसे कर्मचारी-अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई है।
सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीएस चौहान की अध्यक्षता में बने आयोग की इस रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में पेश किया। आयोग में हाईकोर्ट के अवकाश प्राप्त जस्टिस शशि कांत अग्रवाल और पूर्व DGP केएल गुप्ता सदस्य थे। पैनल ने 132 पन्नों की जांच रिपोर्ट में पुलिस एवं न्यायिक सुधारों के संबंध में कई अहम सिफारिशें भी की हैं।
आठ पुलिसवालों की हत्या: आपको बता दें कि कानपुर के बिकरू गांव में दो जुलाई 2020 की रात को 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी। यह टीम कुख्यात माफिया विकास दुबे को पकड़ने उसके घर पर गई थी। पुलिस के पहुंचने की जानकारी विकास दुबे तक पहले ही पहुंच गई थी, लिहाजा छत पर घात लगाए बैठे दुबे और उसके साथियों ने पुलिस पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी। घटना के बाद करीब एक हफ्ते तक दुबे फरार रहा था, इसके बाद में उज्जैन उसे मध्य प्रदेश पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
आयोग के सामने नहीं पेश हुई विकास की पत्नी: अपनी रिपोर्ट में पैनल ने बताया कि पुलिस का पक्ष और घटना से संबंधित सबूतों का खंडन करने के लिए मीडिया की तरफ से कोई नहीं आया। विकास दुबे की पत्नी ने एनकाउंटर को फर्जी बताया था लेकिन आयोग के सामने उपस्थित नहीं हुई थीं।