बिहार के बाद अब झारखंड से भी कोरोना से ही मौतों के आंकड़ों से छेड़छाड़ का मामला सामने आया है। राज्य स्वास्थ्य विभाग ने 25 मई से 5 जून के बीच 12 दिनों तक ग्रामीण क्षेत्रों में गहन स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया। इस दौरान एक लाख कार्यकर्ता 53 लाख घरों तक पहुंचे। मगर यह सर्वे पूरी तरह से फर्जी साबित हुआ।
‘दैनिक भास्कर’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सर्वे के अनुसार पहले दो महीने में 25,571 लोगों की मौत हुई। लेकिन इसमें मौत के कारणों का कोई जिक्र नहीं था। वहीं राज्य के अधिकारियों ने घोषणा कर दी कि इनमें से कोई भी मौत कोरोना से नहीं हुई। रिपोर्ट के मुताबिक महज 12 दिन में ही स्वास्थ्य विभाग की टीम ने 53 लाख घरों में जाकर सर्वे किया। इस दौरान आंगनबाड़ी सेविकाओं ने घर-घर जाकर लोगों से पूछा कि पिछले कुछ महीनों में किसी की मौत तो नहीं हुई।
जिस भी परिवार ने मौत की पुष्टि हुई, उसे सिर्फ आंकड़ों में दर्ज कर लिया। मौत का कारण नहीं पूछा गया। ना ही सेविकाओं ने यह पूछा कि मौत से पहले उनमें कोरोना के लक्षण थे या नहीं। अगर साथ ही मौत के कारण मंगाए जाते तो कोरोना से मौत का सही आंकड़ा सामने आ सकता था।
स्वास्थ्य विभाग ने पांच जिलों में एक अप्रैल से कोरोना से हुई मौतों का ऑडिट कराया है। इसके बाद उन सभी सरकारी और निजी अस्पतालों की भी जांच कराने की घोषणा की है, जहां कोरोना से ज्यादा मौतें हुई हैं। लेकिन होम आइसोलेशन में हुई मौतों की जांच की काेई व्यवस्था नहीं की गई है।
एक अप्रैल से 28 मई यानी 58 दिनों में इन तीन शहरों में कुल 9501 अंतिम संस्कार हुए। इनमें कोविड प्रोटोकॉल से 3052 और सामान्य 6149 थे, यानी कुल 9201 अंतिम संस्कार हुए। फिर इनके बीच जो 300 का अंतर है, वह कहां से आया। साफ है कि इनकी मौत होम आइसोलेशन में हुई है।

