उच्चतम न्यायालय ने सोमवार (28 मार्च) को आय से अधिक संपत्ति मामले में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता को बरी करने के कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को ‘‘एकतरफा’’ और ‘‘शून्य’’ घोषित करने की मांग वाली याचिका को इस मामले पर विचार कर रही एक पीठ के पास भेजा। न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘‘कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही पीठ के सामने इस मामले को रखा जाए।’’

पीठ ने याचिकाकर्ता पंडित परमानंद कटारा से यह भी पूछा कि जब यह मामला उच्च न्यायालय में था तो उन्होंने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया।
शीर्ष अदालत के वरिष्ठ अधिवक्ता कटारा ने कहा कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में इस तरह की अपील दायर होने की प्रवृत्ति बढ रही है और उच्चतम न्यायालय को इस मुद्दे को सुलझाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जयललिता को दोषी ठहराया गया था और जुर्माने के साथ चार साल की सजा हुई थी। इसलिए कानून के अनुसार, पुनरीक्षा याचिका सीआरपीसी की धारा 397, 401 (पुनरीक्षा याचिका सुनने की उच्च न्यायालय की शक्तियां) के तहत दायर होनी चाहिए थी, ना कि धारा 374 (20) के तहत आपराधिक अपील में। कटारा ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 374 के तहत, अपील केवल उस सूरत में दायर हो सकती है अगर सजा सात साल या सात साल से अधिक हो।