पानीपत के बौना लाखू गांव में रहने वाले जसमेर सिंह को लोग कई साल से लस्सी वाला कहकर बुलाते थे, लेकिन रविवार को उनकी यह ‘पहचान’ पूरी तरह बदल गई। अब गांव के लोग उन्हें रजनी के पापा कहते हैं। दरअसल, जसमेर की बेटी रजनी ने पिछले महीने चंडीगढ़ में आयोजित जूनियर नेशनल बॉक्सिंग प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता था, जिसका जिक्र पीएम मोदी ने दूरदर्शन पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान किया। रजनी ने यह कार्यक्रम देखा तो उनके मुंह से सिर्फ इतना निकला, ‘‘यकीन ही नहीं हो रहा, पीएम ने मेरा जिक्र किया।’’
कोच को सबसे पहले मिली थी सूचना: रजनी के कोच सुरिंदर मलिक ने बताया कि इस बारे में उन्हें सबसे पहले दूरदर्शन से सूचना मिली थी। मलिक के मुताबिक, पीएम मोदी प्रेरणादायक कहानियों में काफी दिलचस्पी दिखाते हैं। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस में प्रमुखता से प्रकाशित रजनी की गोल्डन जीत की खबर को उन्होंने मन की बात कार्यक्रम में शेयर किया था। मलिक ने बताया कि रजनी की ट्रेनिंग के लिए उसकी पिता फंडिंग करते हैं, जो राजदूत मोटरसाइकल पर लोहे के भारी कैन लादकर घर-घर लस्सी बेचते हैं।
रजनी के पिता नहीं देख पाए थे कार्यक्रम: रजनी के पिता जसमेर ने बताया, ‘‘मैं मन की बात कार्यक्रम नहीं देख पाया था, लेकिन रजनी ने बताया कि पीएम नरेंद्र मोदी ने उसका जिक्र किया। मैं जब लस्सी बेचकर शाम को घर लौटा तो बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था। गांव के बुजुर्गों ने तो मुझे पार्टी लेकर ही छोड़ा।’’
संडे को दोगुनी लस्सी बिकी: जसमेर ने बताया, ‘‘आमतौर पर मैं रोजाना 60-70 लीटर लस्सी बेचता हूं, लेकिन संडे को 102 लीटर लस्सी बेची और बर्फी व लड्डू के साथ घर लौटा।’’ बता दें कि चंडीगढ़ में आयोजित नेशनल जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप की 46 किलोवर्ग कैटिगरी में रजनी ने गोल्ड मेडल जीता था। इंडियन एक्सप्रेस ने यह खबर ‘लस्सी बेचने वाले की बेटी रजनी ने जीता गोल्ड’ शीर्षक से प्रकाशित की थी।
पीएम ने किया जसमेर की ‘जिद’ का जिक्र: पीएम मोदी ने करीब 2 मिनट तक रजनी के बारे में बात की। उन्होंने बताया कि आर्थिक तंगी होने के बावजूद जसमेर किस तरह अपनी बेटी के सपने को पूरा करने में लगे हुए हैं। गोल्ड मेडल जीतने के बाद रजनी दौड़कर मिल्क स्टॉल पर पहुंची थीं और उन्होंने अपने पिता के सम्मान में एक गिलास दूध पीया था। रजनी ने बताया था, ‘‘मुझे यहां तक पहुंचाने के लिए मेरे पिता ने काफी त्याग किया है। जब मैंने बॉक्सिंग सीखने की इच्छा जाहिर की तो मेरे पिता ने हर जरूरी चीज मुझे मुहैया कराई।’’ पीएम मोदी ने रजनी और उनके पिता को बधाई भी दी।
4 साल पहले बॉक्सिंग सीखने की हुई थी शुरुआत: रजनी ने बॉक्सिंग सीखने की शुरुआत करीब 4 साल पहले की थी। सबसे पहले उन्होंने कुछ लड़कियों को मलिक की फूल सिंह मेमोरियल बॉक्सिंग एकैडमी में ट्रेनिंग लेते हुए देखा था। अपने 6 भाई-बहनों में तीसरे नंबर की रजनी ने पुराने ग्लव्स से ट्रेनिंग लेना शुरू किया था। जब उन्होंने देहरादून में पिछले साल आयोजित नेशनल स्कूल प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीता तो चीजों में सुधार आने लगा। वहीं, पहले ‘खेलो इंडिया’ गेम्स में ब्रॉन्ज मेडल की जीत ने रजनी को नेशनल कैम्प में एंट्री दिला दी। इसके बाद अगस्त 2018 में रजनी ने सर्बिया में आयोजित नेशनल जूनियर कप में रूस की बॉक्स अनसतासिया किरियेंको को हराकर गोल्ड मेडल जीता।
गांव की लड़कियों के लिए मिसाल है रजनी: कोच मलिक ने बताया, ‘‘रजनी अब गांव की लड़कियों के लिए मिसाल बन चुकी है। हमारी एकैडमी में बांस से बने रिंग में ट्रेनिंग दी जाती है। यहां रोजाना 50 से ज्यादा लड़कियां प्रैक्टिस करती हैं। रविवार को मन की बात कार्यक्रम के बाद 6 और लड़कियों ने एकैडमी जॉइन की।’’
‘कई बार खाली पेट भी प्रैक्टिस की’ : वहीं, मन की बात कार्यक्रम के प्रसारण को 2 दिन बीतने के बाद भी रजनी पर उसकी खुमारी कम नहीं हुई है। वह कहती हैं, ‘‘मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा कि पीएम मोदी ने मेरे बारे में बात की। पिछले करीब 5 साल से बॉक्सिंग मेरी जिंदगी बन चुका है। कई बार ऐसा भी हुआ कि मुझे बिना कुछ खाए प्रैक्टिस करनी पड़ी। पूरे घर की जिम्मेदारी मेरे पिता पर ही है। ऐसे में हम एक-दूसरे के लिए खाना तक छोड़ देते थे। पिछले साल खेलो इंडिया गेम्स के दौरान मैंने ओपनिंग सेरेमनी मिस कर दी थी, क्योंकि उसी दिन मेरी बाउट थी और मैं उसके लिए प्रैक्टिस कर रही थी। उम्मीद है कि अगले साल खेलो इंडिया में मैं गोल्ड मेडल जीतूंगी और पीएम नरेंद्र मोदी से मिलूंगी।’’
12 साल से पुरानी राजदूत पर लस्सी बेच रहे हैं मेरे पापा: रजनी अपने पिता के बारे में कहती हैं, ‘‘मेरे पापा 12 साल से पुरानी राजदूत पर लस्सी बेच रहे हैं। वे एक दिन भी छुट्टी नहीं करते। आप सोच भी नहीं सकते कि यह कितना मुश्किल है। सुबह के वक्त वे जब मोटरसाइकिल पर लस्सी के भारी कैन लादते हैं तो कई बार मैं बाइक को स्टैंड पर खड़ा करने के लिए पीछे से धक्का लगाती हूं। उस वक्त मोटरसाइकिल बहुत भारी होती है। मैं सोच भी नहीं सकती कि पूरे दिन वे कैसे मोटरसाइकिल का संतुलन बनाए रखते हैं। जब पूरे दिन की कड़ी मेहनत के बाद वे घर लौटते हैं तो मैं केन उतारने में उनकी मदद करती हूं।’’