वैसे तो जगजाहिर है कि तीन राज्यों मे पसरी राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी दुर्लभ घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुओं सहित अन्य जलीय जीवों के लिए संरक्षित है, लेकिन यहां एक ऐसा पक्षी भी अपना बसेरा बनाए है, जिसकी विश्वभर में संख्या 10 हजार से कम रह गई है। इसमें से 80 फीसद संख्या चंबल में मिलती है फिर भी इसकी गिरती तादाद सबको चिंता में डालती है। चंबल में अन्य प्रजातियों के पक्षी भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं। चंबल में 198 प्रकार के प्रजातियों के पक्षियों की पहचान हुई है, जिनमें इंडियन स्कीमर (जिसको स्थानीय भाषा मे पंचीरा पुकारते हैं) धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। हालांकि चंबल नदी इसके लिए सुखद प्रवास बनी हुई है।
पक्षी प्रेमियों का कहना है कि दुनिया में इस पक्षी की तीन प्रजातियां हैं, जिनमें इंडियन स्कीमर, अफ्रीकन स्कीमर और ब्लैक स्कीमर हंै। पर्यावरणीय डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि विश्वस्तर पर संकटग्रस्त पक्षी की श्रेणी में शामिल पंचीरा चंबल में वैसे तो राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा में बड़ी संख्या में है, लेकिन इटावा के पथर्रा, खेडा अजब सिंह, कसौआ, पिपरौली गढ़िया में इनकी संख्या 200 से 300 के बीच देखी जाती रही है। इंडियन स्कीमर उत्तरी भारत की बड़ी नदियों सिंधु, गंगा ब्रह्णपुत्र से दक्षिण में कृष्णा नदी तक, नेपाल की तराई, बांग्लादेश पाकिस्तान में पाया जाता है। राजस्थान में चंबल नदी खासकर धौलपुर करौली जिले में भी इसको देखा जाता है । चंबल नदी के शुद्ध जल के साथ ही उथले टापू और नेस्टिंग की जगहों की उपलब्धता के कारण चंबल पक्षियों को ज्यादा रास आती रही है। हर साल बडी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आॅफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा विलुप्त प्रजाति में रखे गए स्कीमर परिवार के पक्षी इंडियन स्कीमर का सबसे बड़ा कुनबा अब चंबल नदी में है। हाल ही में हुई पक्षियों की गणना के बाद जो आंकड़ा आया है, उसके मुताबिक देश की गंगा, यमुना, घाघरा और सोन नदियों में जहां इस पक्षी की संख्या घटी है, वहीं चंबल में बढ़ी है। विशेषज्ञों के मुताबिक यह पक्षी उत्तर भारत छोड़कर अब चंबल नदी को अपना सबसे बड़ा बसेरा बना चुका है।
कितने पंचीरा
-1994 में की गई पक्षी गणना के दौरान चंबल में इस पक्षी की संख्या 3555 थी, लेकिन इसके बाद एकाएक इस पक्षी की संख्या घटती चली गई।
-2003 में इस पक्षी की संख्या 2332 हो गई और 2011 में और अधिक घटकर 1524 रह गई।
-2017 में 1839 पक्षी दिखाई देने से वन विभाग को उम्मीद है कि इंडियन स्कीमर के मामले में यह आंकड़ा जल्दी ही फिर से 1994 की स्थिति में पहुंच जाएगा।
कितने घोंसले
इस वक्त चंबल के पथरी में 35, पिपरौली गढ़िया में 17, खेड़ा अजब सिंह मे 5, कमौनी मे 32, सांगरी में 9 और पाली में 11 घोंसले मिले हुए हैं जबकि कसौआ के सामने मध्यप्रदेश की तरफ मे कुछ घोंसले खराब हो गए हैं। दो से लेकर चार बच्चे तक निकलने वाले इस पक्षी का विलुप्त श्रेणी में शुमार करके रखा गया है ।चंबल मे लगातार घटते पानी को लेकर इस साल जनवरी मे और मार्च मे मध्य प्रदेश के देवरी मे उत्तर प्रदेश-मध्यप्रदेश और राजस्थान के अफसरों के बीच संगोष्ठी हो चुकी है जिसमें सबने एक मत से कोटा से चंबल मे पानी की उपलब्धता अधिक से अधिक कराने पर जोर दिया क्योंकि इससे चंबल मे मोटर वोट आदि का संचालन नहीं हो पा रहा है जिस कारण इन पक्षियों को लोकेट करने में कठिनाई खड़ी हो रही है। चंबल एक ऐसी नदी है जिसको सेंचुरी के तौर पर संरक्षित किया गया है जिससे यहां पर अन्य प्रभावित करने वाली गतिविधियां नहीं हो पाती हंै ।
बालू पर अपने घोंसले बनाने वाले इंडियन स्कीमर चंबल मे पानी के कमी और खनन के चलते बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। आयलैंड पर अपने घोसले बनाने वाले इस पक्षी को स्थानीय भाषा मे पंजीरा बोलते हैं क्योंकि यह जब उड़ता है तो पानी को चीरता हुआ अपनी चोंच में पानी की बंूदे लेता है।
सुरेश चंद्र राजपूत
चंबल सेंचुरी के वन्य जीव प्रतिपालक