फेसबुक, ट्विटर के जरिए देश-दुनिया में बढ़ती दोस्ती, अपनी हर दिन की तस्वीरें इसके जरिए ‘दुनिया’ से शेयर करने के इस दौर में भी ‘देसां में देस म्हारा हरियाणा’ के ऐसे कई इलाके हैं जहां ‘परंपरा’ के नाम पर विवाह से पहले भी और बाद में भी लड़कियों का चेहरा दिखाने भर से ही बदन उघाड़ने जैसे विशेषणों की झड़ी लग जाती है। विवाह के लिए साझेदार ढूंढ़ने की बात हो या विवाह के बाद घर-गृहस्थी में रहने-पहनने ओढ़ने की बात हो, यहां सब कुछ पहले से निर्धारित है। बस लड़की को उस कोष्ठक (ब्रैकेट) में घुसना भर है, दोनों तरफ के कोष्ठक पहले से ही तैयार हैं उसे बंद करने के लिए।

हरियाणा के कुछ इलाकों में इन रीतियों को कुरीतियों में बदलते देख हालांकि कुछ लोगों ने इनके खिलाफ आवाज बुलंद की है। हरियाणा में घूंघट प्रथा के खिलाफ बड़ी दृढ़ता से आवाज बुलंद करने वाली कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय में शारीरिक शिक्षा की सहायक प्रोफेसर संतोष दहिया ने इस कुरीति को दूर करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया है। ऐसे ही ‘सेल्फी विद डाटर्स’ मुहिम के जरिए देश भर में ख्यातिप्राप्त सुनील जागलान भी बच्चियों की सुरक्षा और प्रतिष्ठा के लिए झंडा उठाए हुए हैं। इनका मानना है कि दो-चार लोगों से नहीं, सभी के आगे आने से ही ये कुरीतियां हटेंगी।

बकौल दहिया, ‘मैं रोहतक के दीघल गांव की रहने वाली हूं। छोटी उम्र में ही यहां की परंपराओं से परिचित हो गई थी। कुरूक्षेत्र में शादी होने के बाद मुझे हमेशा घुंघट डाल कर रहना पड़ता था। शुरुआती दिनों में कुएं से पानी लाते वक्त मुझे घुंघट के कारण काफी दिक्कतें आती थी और उसी के चलते मैं एकबार गिर गई। तब ठानी कि इस रीत को खत्म करने के लिए मुझे कुछ करना होगा। अपनी इसी सोच को लेकर मैंने कुरूक्षेत्र के गांव पिपली में ‘म्हारा बाना पर्दा मुक्त हरियाणा’ के नाम से एक जागरूकता अभियान चलाया।

इस बाबत जब मानस की पंच पुनम रानी से बात की गई तो उन्होंने कहा, ‘हमें मालूम है कि पर्दा करना सही नहीं है लेकिन ग्रामीण समाज इसे खत्म करने नहीं देता। हमें यहां रहने के लिए घुंघट निकालना ही पड़ता है। अन्यथा हमारे ससुर, जेठ आदि इसे सही नहीं मानते।’ पूनम उन्हीं पंचों में से है जिन्होंने दहिया के जागरूकता अभियान में अपना घूंघट हटाया था।

बेटियों के जीवन के लिए झंडा उठाए सुनील जागलान ने बताया कि जब उन्होंने बेटी के जन्म पर नर्स को दो हजार रुपए दिए तो उसने उन्हें लेने से मना कर दिया और कहा, ‘लड़के के जन्म पर तो हम ले भी लेते लेकिन बेटी के पैदा होने पर अगर हमने ये लिए तो डाक्टर साहब भी गुस्सा करेंगे।’ उस वाकये से महिलाओं के उद्दार के लिए कुछ करने की इच्छा ने जागलान को ‘सेल्फी विथ डाटर’, ‘बेटियों के नाम से घरों के नाम’ का विचार दिया। जागलान ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने पहली बार महिलाओं को चौपाल में पढ़ाने में सफलता हासिल की। उनकी इस सोच को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी सराहा व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में उनका कई बार जिक्र भी किया।

सुनील बताते हैं, ‘गांवों में अवैध शराब की बिक्री को खत्म करने के लिए मैंने महिला सेना का गठन किया। इसी तरह चौपाल में अलमारी रखी गई जहां प्रतियोगी परीक्षाओं के संबंधित पुस्तकें रखी गई ताकि महिलाएं इनका लाभ उठा सके। मेवात के मुसलिम बहुल जगहों पर मैंने जागरूकता अभियान कर महिलाओं को बुरका हटाने के लिए प्रेरित किया। असली कामयाबी तो हमें तब मिली जब 2014 में प्रधानमंत्री उम्मीदवारों ने यहां पर हरेक मुद्दे को महिलाओं को आगे बढ़ाने, लिंगानुपात में सुधार लाने से जोड़ दिया।’

‘लाडो राईज’ के लेखक सुनील ने अपनी इस किताब में महिलाओं के लिए बनाईं गईं तमाम धाराओं को हिंदी में लिखा है ताकि कोई भी इसे आसानी से समझ सके। वह बताते हैं कि उन्होंने अबतक चार हजार महिलाओं को यह किताब नि:शुल्क मुहैया कराया है।

तमन्ना अख्तर, चंडीगढ़