जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों को अपने पुस्तकालयों के लिए भगवद्गीता और रामायण की प्रतियां खरीदने के आदेश को मंगलवार को वापस ले लिया। राज्य के मुख्य सचिव द्वारा जारी आदेश में कहा गया, “शिक्षा विभाग द्वारा कुछ धार्मिक किताबों को पुस्तकालयों के लिए खरीदे जाने संबंधी सर्कुलर को वापस ले लिया गया है।” शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी कर भगवद्गीता और रामायण की प्रतियां खरीदने के आदेश को सोमवार को सार्वजनिक किया था। इस फैसले की व्यापक तौर पर आलोचना हुई थी। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने स्कूलों, कॉलेजों और पुस्तकालयों में धार्मिक किताबें रखने के औचित्य पर सवाल उठाया था। कहा था कि यह ऑर्डर एक विशेष धर्म की धार्मिक किताब को लेकर दिया गया है। अन्य धर्मों की उपेक्षा की गई है। पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस फैसले की आलोचना करते हुए सोमवार को ट्वीट कर कहा था, “सिर्फ गीता और रामायण ही क्यों? यदि धार्मिक किताबों को स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी पुस्तकालयों में रखा जाना है तो इन्हें केवल एक धर्म के आधार पर क्यों चुना जा रहा है? बाकी के धर्मों को नजरअंदाज क्यों किया जा रहा है?”
Why just the Gita & Ramayana? If religious texts are to be placed in schools, collages & government libraries (and I’m not convinced that they need/should be) then why is it being done selectively? Why are other religions being ignored? pic.twitter.com/UqxMG0NpMJ
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) October 22, 2018
जम्मू-कश्मीर सरकार ने अपने आदेश में कहा था, “विद्यालय शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा विभाग, कॉलेज डॉयरेक्टर, लाइब्रेरी डॉयरेक्टर ओर संस्कृति विभाग ‘श्रीमद्भागवत गीता’ और कोशुर ‘रामायण’ की उर्दू संस्करण की प्रतियां, जिसे श्री सरवानंद प्रेमी द्वारा लिखा गया है, प्रर्याप्त संख्या में खरीदने पर विचार करें ताकि इसे सभी विद्यालय, कॉलेज, सार्वजनिक लाइब्रेरी में उपलब्ध करवाया जा सके।” इस आदेश पर स्कूल शिक्षा विभाग के एक सचिव का हस्ताक्षर पढ़ा जा सकता है। अाधिकारिक आदेश के अनुसार, धार्मिक पुस्तक खरीदने का निर्णय जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार बीबी व्यास की अध्यक्षता में 4 अक्टूबर को हुई बैठक में लिया गया था। लेकिन सरकार के इस आदेश से मुस्लिम बहुल राज्य में नया विवाद खड़ा हो गया। सरकार की आलोचना होने लगी।
यह पहली बार नहीं है कि जब किसी राज्य में सरकार द्वारा धार्मिक या किसी की जीवनी से जुड़ी पुस्तक खरीदने का आदेश दिया गया है। इससे पहले असम में राज्य सरकार ने स्कूली बच्चों के लिए दीनदयाल उपाध्याय से जुड़ी पुस्तक खरीदने का आदेश दिया था। इसके लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। राजस्थान में भी सरकार द्वारा संघ विचारक राकेश सिन्हा द्वारा लिखी पुस्तक ‘आधुनिक भारत के निर्माता- केशव बलिराम हेडगवार’ खरीदने का आदेश दिया गया था। हालांकि, विपक्षी पार्टियों द्वारा इस फैसले की भी आलोचना की गई थी।बता दें कि वर्ष 2011 की जनसंख्या के अनुसार, जम्मू-कश्मीर में कुल आबादी का 68 प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों का है। वहीं, 28 प्रतिशत ही हिंदू हैं। 1.9 प्रतिशत सिख और 0.9 प्रतिशब बौद्ध धर्म मानने वाले हैं। (एजेंसी इनपुट के साथ)