जम्मू-कश्मीर में होने वाले निकाय चुनावों में पहली बार भाजपा के 60 उम्मीदवार निर्विरोध जीते हैं। इससे पार्टी नेता गदगद हैं लेकिन श्रीनगर के वार्ड नंबर 33 के उम्मीदवार मोहम्मद फारुख खान उर्फ सैफुल्ला को लेकर पार्टी विवादों में है। फारुख खान एक पूर्व आतंकी है, जो पाकिस्तान में आतंकवादी ट्रेनिंग ले चुका है। खान घाटी के उन युवकों में शामिल रहा है जिन्होंने 1980 के दशक में हाथों में बंदूक उठा लिए थे और लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) पार कर पाकिस्तान के आतंकी कैम्पों में जाकर जिहाद की ट्रेनिंग ली थी। इन युवकों ने कश्मीर की आजादी के लिए जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट ज्वाइन कर लिया था।
फारुख खान का जन्म 1970 में श्रीनगर के निचले इलाके बरबरशाह में हुआ था। 1980 के दशक के अंतिम वर्षों में खान कॉलेज पहुंच चुका था, उस वक्त घाटी में उग्रवाद चरम पर पहुंच चुका था और घाटी के अधिकांश युवक पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में जाकर तथाकथित कश्मीर की आजादी के लिए भारत के खिलाफ आतंक की ट्रेनिंग लेने लगे थे। 1989 के आसपास ये लोग भारत के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। दरअसल, 1987 के एक विवादित चुनाव के साथ कश्मीर में बड़े पैमाने पर सशस्त्र उग्रवाद की शुरूआत हुई थी और आतंकवादी खेमे का गठन हुआ था। इस दौरान उग्रवादियों ने कई सुरक्षाकर्मियों के हथियार लूट लिए थे।
न्यूज 18 से बातचीत में फारुख खान ने बताया कि वो कॉलेज के दिनों में सैयद सलाउद्दीन के काफी करीब आ गया था जो 1987 में श्रीनगर की अमिरा कादल विधानसभा सीट से मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट का उम्मीदवार था। खान सलाउद्दीन का पोलिंग एजेंट भी था। सलाउद्दीन जब चुनाव हार गया तो एलओसी क्रॉस कर पाकिस्तान चला गया और आतंकी गतिविधियों में शामिल हो गया। वह हिजबुल मुजाहिद्दीन का चीफ भी था। 1991 में फारुख खान मुनवराबाद इलाके में एक आतंकवाद विरोधी अभियान में गिरफ्तार कर लिया गया था। उसने करीब साढ़े दस साल तक जेल में सजा काटी। फारुख का कहना है कि जेल में उसे पीटा गया था।
I was in Jammu Kashmir Liberation Front & Harkat-ul-Mujahideen. After coming out of prison, I formed J&K Human Welfare Organisation for rehabilitation of ex-militants. No one supported me, not even those for whom I picked gun.I didn't know they were only counting notes: Md F Khan pic.twitter.com/uELeqmOnLU
— ANI (@ANI) October 3, 2018
समाचार एजेंसी एएनआई से फारुख ने कहा, ‘मैं जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट और हरकत-उल-मुजाहिदीन में था। जेल से बाहर आने के बाद मैंने पूर्व आतंकवादियों के पुनर्वास के लिए जम्मू-कश्मीर मानव कल्याण संगठन का गठन किया। किसी ने मुझे समर्थन नहीं दिया, यहां तक कि उन्होंने भी नहीं, जिनके लिए मैंने बंदूक उठाई थी। मुझे नहीं पता था कि वे केवल नोट गिन रहे थे।’ खान का कहना है, ‘लोग पहले भी मेरे साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे और आज भी कर रहे हैं लेकिन मैं शांति के लिए काम कर रहा हूं। मैं जीतकर पूर्व-आतंकवादियों के पुनर्वास और उनके बच्चों की शिक्षा पर अपनी कमाई पर खर्च करूंगा… मैंने पुनर्वास नीति पर आत्मसमर्पण नहीं किया है।’