जम्मू-कश्मीर में वीरता और सेवा के लिए दिए जाने वाले पुलिस पदकों पर लगे शेख अब्दुल्ला के फोटो को हटाकर अब राष्ट्रीय प्रतीक का चिह्न लगाया जाएगा। जम्मू-कश्मीर सरकार ने सोमवार को इसकी घोषणा की। शेख अब्दुल्ला नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री थे। पुलिस पदकों पर अशोक स्तंभ के चिह्न लगाने के बारे में गृह विभाग से आदेश जारी किए गए हैं।
गृह विभाग के प्रधान सचिव आरके गोयल ने एक आदेश में कहा कि जम्मू-कश्मीर पुलिस पदक योजना के पैरा 4 में संशोधन करते हुए पदक के एक तरफ लगाई गयी ‘शेर-ए-कश्मीर’ की तस्वीर को भारत सरकार के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ से बदल दिया जाएगा। इससे पहले सरकार ने ‘शेर-ए-कश्मीर पुलिस पदक’ का नाम बदलकर ‘जम्मू-कश्मीर पुलिस पदक’ कर दिया था। शेख मोहम्मद अब्दुल्ला को ही ‘शेर-ए-कश्मीर’ कहा जाता है।
कौन थे शेख अबदुल्ला? शेख अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के दादा और फारूक अब्दुल्ला के पिता थे। फारूक अब्दुल्ला जब जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपने पिता की याद में पुलिसकर्मियों को दिए जाने वाले पदकों पर उनकी फोटो लगा दी थी। शेख अब्दुल्ला का जन्म 5 दिसंबर, 1905 को श्रीनगर के पास स्थित सौरा में हुआ था। उन्होंने लाहौर और अलीगढ़ में पढ़ाई की। अलीगढ़ से साल 1930 में विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के बाद वे श्रीनगर वापस लौट आए।
मैट्रिक करने के बाद उन्होंने लाहौर में विज्ञान की पढ़ाई शुरू की, तभी उनमें राजनीतिक चेतना विकसित हुई और वो कई राष्ट्रवादी नेताओं के संपर्क में आए। वहां से बीएससी करने के बाद शेख अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय गए, जहां से उन्होंने केमेस्ट्री में एमएससी की। इसके बाद उन्होंने मामूली तनख्वाह पर कश्मीर में एक हाईस्कूल में नौकरी की।
कश्मीर के सबसे लोकप्रिय नेता: महाराजा हरिसिंह की नीतियों और नौकरियों को लेकर मुस्लिम युवकों के आक्रोश को उन्होंने आवाज देने का काम किया। धीरे-धीरे वो कश्मीर की राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय होने लगे और वहां के सबसे लोकप्रिय नेता बन गए। शेख अब्दुल्ला ने पढ़ी-लिखी अवाम को इकट्ठा कर उनके भीतर राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाने की बात की। उनकी कोशिशों के चलते 1932 में मुस्लिम कांफ्रेंस नाम का एक संगठन बना। साल 1938 में संगठन का नाम ‘मुस्लिम कांफ्रेंस’ से बदलकर ‘नेशनल कांफ्रेंस’ कर दिया गया।
करीब 5 साल बाद उनकी सरकार को बहुमत नहीं होने के चलते गिरा दिया गया। कुछ ही दिनों बाद शेख अब्दुल्ला को कश्मीर-साजिश के आरोप में लगभग 11 सालों के लिए जेल में डाल दिया गया। करीब 11 साल तक जेल में रहने के बाद सरकार ने उन पर लगे सारे आरोप वापस ले लिए थे। 8 सितंबर 1982 को उनकी मौत हो गयी।
एमजे अकबर ने उनके बारे में कहा था, “तमाम उतार चढ़ावों के बीच वह एक हिंदुस्तानी की तरह जिए और हिन्दुस्तानी की तरह ही मरे। अपनी कमजोरियों और खूबियों के साथ वो कश्मीर के नहीं बल्कि भारतीय उपमहाद्वीप के बहुत महत्वपूर्ण नेता थे। इसमें भी कोई शक नहीं कि उनसे ज्यादा लोकप्रिय और स्वीकार्य नेता आज तक कश्मीर में नहीं हुआ।”
दो शादियां की थीं: शेख अब्दुल्ला ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली पत्नी कश्मीरी मीरजान थीं। इसके बाद उन्होंने स्लोवाक मूल की अकबर जहां से शादी की। हालांकि, अपनी पार्टी में उत्तराधिकारी का चयन उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से करने की बजाए परिवार के बेटे को गद्दी दी। जिसकी वजह से उनकी पार्टी के कुछ नेताओं में असंतोष भी फैला।