Jammu Kashmir Assembly Election: चुनाव आयोग ने शुक्रवार को जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में इलेक्शन करवाने की घोषणा कर दी है। इससे कुछ ही घंटों पहले जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पुलिस और सिविल व्यवस्था में भी जरूरी बदलाव किए हैं। इसमें पुलिस के नए इंटेलिजेंस चीफ का नाम भी शामिल है।
प्रशासनिक बदलाव दूरगामी नतीजों को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं। नियमों में बदलाव का सबसे बड़ा आदेश जुलाई के महीने में आया था। इसके तहत केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उपराज्यपाल को काफी सारी शक्तियां दे दी गईं। उनके पास पहले से भी काफी अधिकार हैं। जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्रशासित प्रदेश है। संशोधन के बाद में अब उपराज्यपाल के पास आईएएस और आईपीएस समेत सिविल और पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर के संबंध में ज्यादा शक्तियां होंगी। वहीं पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और एंटी करप्शन ब्यूरी जैसे चीफ के डिपार्टमेंट की नियुक्ति अब सीएम के बजाय उपराज्यपाल के पास में होंगी।
उपराज्यपाल को मिले अधिकार
इस संशोधन में उपराज्यपाल को एडवोकेट जनरल और लॉ ऑफिसर की नियुक्ति करने का भी अधिकार दिया गया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने संशोधनों का विरोध करते हुए कहा कि ये जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ अन्याय है। कांग्रेस ने कहा कि यह लोकतंत्र की हत्या है। यहां तक की केंद्र के करीबी माने जाने वाली अपने पार्टी ने भी सभी दलों से मतभेदों को दूर करने और इस कदम के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करने का आग्रह किया।
चपरासी की नियुक्ति के लिए भी एलजी से पूछना पड़ेगा- उमर अब्दुल्ला
इस महीने की शुरुआत में इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक इंटरव्यू में नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला ने दोहराया कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे। उमर ने कहा कि मैं एक राज्य का सीएम रहा हूं। मैं खुद को ऐसी स्थिति में नहीं देख सकता जहां मुझे अपने चपरासी की नियुक्ति के लिए एलजी से पूछना पड़े। एक दूसरे कदम के तहत 31 जुलाई को एलजी मनोज सिन्हा की अध्यक्षता वाली प्रशासनिक परिषद ने तत्कालीन पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को मालिकाना जमीन के अधिकार दिए। यह करीब 70 साल पहले जम्मू-कश्मीर में आकर बस गए थे।
शुक्रवार को एडमिनिस्ट्रेटिव की तरफ से एक आदेश जारी किया गया। इसमें तत्कालीन वेस्ट पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को उन लोगों की संपत्ति पर मालिकाना हक दिया गया, जो बंटवारे के दौरान पाकिस्तान या पीओके में चले गए थे। वहीं जनवरी महीने के एक आदेश में जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने प्रशासन के एक और आदेश पर आपत्ति जताई थी। प्रशासन ने किश्तवाड़ में रतले बिजली प्रोजेक्ट्स से 40 साल के लिए बिजली लेने के लिए राजस्थान ऊर्जा विकास और आईटी सर्विसेज लिमिटेड के साथ समझौता किया था। राजनीतिक नेताओं ने इस बात पर सवाल उठाया कि जब केंद्र शासित प्रदेश में खुद ही बिजली की कमी है तो इसकी क्या जरूरत है।