नोएडा के बाजार चाइना और कोरिया के उत्पादों से पटे पड़े हैं। नोएडा कभी मेन्यूफैक्चरिंग उद्योग का हब कहा जाता था। आज अपने अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहा है। इसे बचाने के लिए प्रदेश सरकार चुप्पी साधे है। यह सवाल खुद उद्यमियों ने खड़ा कर दिया है।

उद्यमियों का कहना है कि पूरे जोश के साथ नोएडा में औद्योगिक गतिविधि की शुरुआत हुई, जिसमें हर फैक्ट्री कुछ न कुछ आइटम बना रही थी। इससे रोजगार बड़े पैमाने पर बढ़ता जा रहा था। लेकिन जब से चाइना और कोरिया ने बाजार पर कब्जा जमाया है। इसमें टीवी-फ्रीज में सैमसंग और एलजी के सामने और चाइना के प्रेस कूलर से लेकर गीजर एसी में दूसरा कोई खड़ा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में भारतीय सूक्ष्म लघु एवं मध्यम इकाइयों (एमएसएमई) में बने उत्पाद न फनिशिंग और न ही प्राइम में टिक सके। वे खुद ही प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गए। रही सही कसर उत्तर प्रदेश सरकार की कड़ी टैक्स नीति ने पूरी कर दी है, जिसके चलते यहां के उद्यमियों को अपनी औद्योगिक इकाइयों को बंद कर उत्तराखंड, हिमांचल और पूर्वी-उत्तर राज्य की ओर पलायन करने को मजबूर कर दिया। नोएडा में जिन छोटे-मोटे उद्यमियों और उद्योगों पर बैंकों के कर्ज लदे थे। वे पूरी तरह से खुद ही पस्त हो गए।

फेडरेशन आॅफ नोएडा इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष विपिन मल्हन का कहना है कि प्रदेश सरकार एमएसएमई के विस्तार और विकास की ओर ध्यान नहीं दे रही है। यही औद्योगिक इकाइयां नोएडा को विश्व स्तरीय पहचान दिला चुकी हैं। अब यह इकाइयां पूरी तरह से समाप्ति की ओर अग्रसर है, जिस पर तुरंत उपाय की जरूरत है। उद्यमी, विकास इंजीनियर्स, सेक्टर-दस का कहना है कि प्रदेश सरकार-उद्यमियों के बीच लिंक पूरी तरह से टूट गया है। जिला प्रशासन और जिला उद्योग केंद्र का भी उद्यमियों से संबंध खत्म हो गया है।

ऐसे में इनका जिले में अब क्या औचित्य है। यह बात समझ में नहीं आ रही ही है, क्योंकि औद्योगिक विस्तार व विकास में जो इनकी भूमिका होनी चाहिए। वह कहीं भी नजर नहीं आ रही है, जिसका सीधा खमियाजा उद्यमियों को उठाना पड़ रहा है। जेएंडएस वॉयरलिंकस प्राइवेट लिमिटेड, सेक्टर-59 के एमडी सुधीर श्रीवास्तव का कहना है कि कोरिया व चाइना के सामने प्रतिस्पर्धा के लिए कौन खड़ा होगा। प्रदेश सरकार को टैक्स फ्री जोन करने के लिए समझाएगा कौन। स्थिति चिंताजनक है। सारे रास्ते बंद हैं।

सरकार की हालत यह है कि वह कुछ करेगी नहीं। औद्योगिक नगरी के तौर में पहचान बना चुका नोएडा अब अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। हालात यहां तक पहुंच चुके है कि यहां पर औद्यौगिक के नाम पर कुछ नहीं हो रहा है। औद्योगिक विकास के नाम पर बने प्राधिकरण भी आवासीय प्राधिकरण बनकर रह गए हैं। प्राधिकरण के अफसरों को अब उद्योगों में रुचि नही हैं।