भारत की इकलौती 41 वर्षीय वनमानुष ‘बिन्नी’ की ओडिशा के नंदन-कानन जूलॉजिकल पार्क में मौत हो गई। प्राप्त जानकारी के मुताबिक बिन्नी की मौत बुधवार (29 मई) को रात 9:40 बजे मौत हो गई। बताया जा रहा है कि बिन्नी पिछले तीन दिनों से सर्दी-जुकाम और उम्र ज्यादा होने की वजह से सांस की समस्या से जूझ रही थी।’
एक साल से चल रहा था इलाजः बिन्नी का पिछले एक साल से कॉलेज ऑफ वेटिनरी साइंस और एनिमल हंसबेडरी (ओयूएटी) के डॉक्टर इलाज कर रहे थे। बिन्नी का यूके और सिंगापुर के डॉक्टरों की सलाह पर इलाज किया जा रहा था। शनिवार (1 जून) को बिन्नी का पोस्टमॉर्टम किया जाएगा, जिसके बाद ही उसकी मौत का असली कारण का पता चल पाएगा।
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साल 2003 में लाई गई थीः बता दें बिन्नी को 20 नवंबर 2003 में पुणे के राजीव गांधी जूलॉजिकल पार्क से नंदन कानन जू लाया गया था। उस समय वह 25 साल की थी। बता दें कि एक वनमानुष की औसत उम्र 45 वर्ष होती है। ये मूल रुप से इंडोनेशिया और मलेशिया पाए जाते हैं। मौजूदा समय में ये केवल बोर्निया और सुमात्रा के घने जंगलों में पाए जाते हैं। वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अनुसार, वनमानुष की तीन तरह की प्रजातियां होती हैं – बोर्नियन, सुमात्राण और तपनौली। बोर्नियन और सुमात्राण वनमानुषों के दिखने और व्यवहार में थोड़ा अंतर होता है। नवंबर 2017 में वनमानुष की तीसरी प्रजाति के रूप में पहचानी जाने वाली तपनौली को अलग पहचान दी गई थी। तीनों प्रकार के वनमानुष संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ के रूप में सूचीबद्ध हैं। डब्ल्यू डब्ल्यू एफ ने कहा कि खास लाल फर वाले वनमानुष अधिकांश समय पेड़ों में बिताने वाला सबसे बड़ा स्तनपायी होता है।