बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता वाली पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) बीजेपी के बड़े भाई की भूमिका में नजर आती थी लेकिन अब वह ‘छोटे भाई’ की भूमिका में नजर आ रही है। हाल फिलहाल की गतिविधियां तो यही इशारा कर रही हैं। चाहे वह आर्टिकल 370 पर केंद्र सरकार का समर्थन हो या फिर इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बिहार की सीटों पर बराबार सीटों पर चुनाव लड़ना हो। आर्टिकल 370 के मुद्दे पर जेडीयू हमेशा से बीजेपी का साथ देने के लिए मना करती रही लेकिन जैसे ही इसे निरस्त करने वाला कानून लाया गया तो जेडीयू भी हवा की तरह अपना रुख बदलती नजर आई। पार्टी के वरिष्ठ नेता आरसीपी सिंह ने कहा कि आर्टिकल 370 पर समर्थन देश के विकास के लिए है और सभी को इस पर काम करना चाहिए। जब कोई विवादास्पद मुद्दा होता है, तो सभी अपनी बात रखते हैं लेकिन एक बार कानून बनने के बाद इसे स्वीकार करना चाहिए और वहां से आगे बढ़ना चाहिए।
क्या बीजेपी के बिना जेडीयू को नुकसान?
अब सवाल यह है कि जेडीयू की ऐसी क्या मजबूरियां हैं जिनके चलते उन्हें अपना रुख बदलना पड़ रहा है? अगर यह कहा जाए कि जेडीयू अपने राजनीतिक फायदे के लिए मोदी सरकार के फैसलों का पहले तो विरोध कर रही है लेकिन बाद में उनका समर्थन करती नजर आ रही है। मालूम हो कि 2009 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने 25 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 20 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। जबकि बीजेपी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 11 सीटें जीती थीं। लेकिन 2014 में दोनों ने अपनी राहें अलग कर ली।
नतीजा यह हुआ कि जेडीयू महज 2 सीट जीतने में ही कामयाबी हुई। इसके बावाजूद 2019 लोकसभा चुनाव में नीतीश ने बीजेपी से बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद्द की जिसे बीजेपी ने पूरा भी किया। चुनाव परिणाम आए और दोनों ही दलों को जबरदस्त जीत मिली। बीजेपी ने यहां खुद को एकबार फिर बड़ा खिलाड़ी बताया तो वहीं नीतीश की पार्टी नौ साल में बड़े से छोटे भाई की भूमिका में खुद को ढालते नजर आई। क्योंकि इससे पहले वह चुनावी मैदान में बीजेपी से ज्यादा सीटों पर अपने उम्मीदवारों को उतारने की जिद्द पर अड़ी रही थी।
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अगले साल बिहार विधानसभा चुनाव
अगले साल बिहार में चुनाव होने हैं। वहीं 2010 में हुए राज्य विधानसभा चुनाव में जेडीयू-बीजेपी गठबंधन ने अभूतपूर्व जीत हासिल की थी। जेडीयू-बीजेपी गठबंधन को तीन चौथाई बहुमत मिला था। जेडीयू ने 115 तो वहीं बीजेपी ने 91 सीटों पर जीत हासिल की थी। दोनों दल मिलकर आरजेडी को हाशिये पर ले आए थे। वहीं 2015 में महागठबंधन ने बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए को करारी शिकस्त दी थी। 2015 में जेडीयू ने बीजेपी से अलग होकर चुनाव लड़ा था। इसका फायदा महागठबंधन को मिला।
आरजेडी ने 80 तो जेडीयू ने 71 और कांग्रेस ने 27 सीटों पर जीत हासिल की। जबकि बीजेपी ने 53 सीटों पर तो वहीं उनके सहयोगी दल आरएलएसपी 2, एलजीपी 2 और हम एक सीट जीतने में कामयाब रही। हालांकि इसके बाद महागठबंधन की सरकार तो बनी लेकिन बाद में जेडीयू ने महागठबंधन से अलग होकर बीजेपी के साथ सरकार बनाने में कामयाब हुए।
वहीं दोनों ही दल लोकसभा चुनाव की तरह ही विधानसभा चुनाव में भी प्रतिद्वंदी दलों (आरजेडी, कांग्रेस) को कड़ी टक्कर देकर एकबार फिर अपनी सरकार बनाने की कोशिश करेगी। नीतीश भी कहीं न कहीं यह जान चुके हैं कि बीजेपी के साथ रहने से उन्हें फायदा ज्यादा है और नुकसान कम। ऐसे में पार्टी उन मुद्दों पर बीजेपी का साथ देती नजर आ रही है जिसका वह कड़ा विरोध करती रही है। हालांकि तीन तलाक बिल पर जेडीयू संसद में मोदी सरकार के खिलाफ खड़ी नजर आई। ऐसा कर जेडीयू बीजेपी के सामने खुद की अहमियत और मुस्लिम वोटरों को साधने की कोशिश करती नजर आई।