भारत-नेपाल और चीन के संबंधों के त्रिकोण पर चल रही बहस के बीच नेपाल के उप-प्रधानमंत्री एवं गृह मंत्री विमलेंद्र निधि ने शनिवार को कहा कि हिमालयी देश में भारत की भूमिका अहम है। नेपाल सरकार की तरफ से शांति दूत के रूप में भारत आए निधि ने जनसत्ता से विशेष भेंट में कहा कि नेपाल की मौजूदा राजनीति में एक ही बाहरी देश प्रासंगिक है। और वह है भारत। निधि से नेपाल की हाल में चीन से नजदीकियों के सबंध में सवाल पूछा गया था। चीन के बारे में कुछ बोलने के बजाए उन्होंने कहा, ‘फिलहाल नेपाल की राजनीति में तीन तत्त्व ही प्रमुख हैं – नेपाली कांग्रेस, माओवादी और भारत। इसके अलावा किसी चौथी ताकत की कोई भूमिका नहीं है’। उन्होंने कहा कि नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड का प्रयास है कि नेपाली संविधान में अहम संशोधन लागू करने के बाद वहां सबको साथ लेकर चलें। गौरतलब है कि नेपाल का संविधान 2018 तक लागू होना जरूरी है। लेकिन इसके लिए मौजूदा सरकार के पास दो-तिहाई बहुमत नहीं है।
नेपाल के संविधान संशोधन के समय भारत ने सलाह दी थी कि नेपाल में मधेसियों और छोटी-बड़ी प्रजाति के साथ न्याय हो, राजनीतिक स्थिरता हो ताकि नेपाल विकास के मार्ग पर पहुंच सके। मधेसियों का भारत के साथ रोटी-बेटी का संबंध जुड़ा रहा है, जबकि नेपाल के उत्तरी क्षेत्र में भारत विरोधी खेमा सक्रिय है। संविधान में अपनी आनुपातिक अगुआई नहीं होने से मधेसी जनता ने बगावत करते हुए भारत से नेपाल को रसद और र्इंधन तेल की आपूर्ति के सारे मार्गों की नाकेबंदी कर दी थी। इसके बाद भारत और नेपाल के संबंधों में काफी तल्खी आई थी।
निधि ने कहा, ‘प्रचंड सरकार मधेसी समुदाय की अगुआई के लिए प्रतिबद्ध है और इसके तहत संविधान में कुछ संशोधन किए जाएंगे। पहला तो यह है कि चुनाव क्षेत्रों का सीमांकन जनसंख्या के अनुपात से किया जाएगा। इसके साथ ही नेपाली संसद में उच्च सदन के गठन की रूपरेखा पर भी विचार किया जा रहा है। वहीं नागरिकता का मुद्दा भी अहम है। अगर कोई 15 साल से ज्यादा नेपाल में प्रवास कर चुका है या यहां के किसी नागरिक से शादी की है तो उसे तुरंत नागरिकता प्रदान की जाएगी’।
निधि ने कहा कि संविधान संशोधन लागू करने के लिए नेपाली सरकार को दो-तिहाई बहुमत चाहिए। इसके लिए प्रचंड सरकार अन्य दलों को साथ लेकर चलने की कोशिश कर रही है। इसके साथ ही उन्होंने कहा, ‘माओवादियों को किसी तरह की फिक्र करने की जरूरत नहीं है। एक कम्युनिस्ट चला गया तो दूसरा आ गया है’। निधि ने प्रचंड को उद्धृÞत करते हुए कहा कि वे अगर किसी खास बंधी हुई विचारधारा को थोपने के पक्षधर होते तो नेपाल में संविधान संशोधन किसी तरह से नहीं हो पाता। वे क्षेत्र में भावी राजनीतिक शक्ति बनने के लिए भारत का सहयोग चाहते हैं।
निधि ने जनसत्ता से कहा कि नेपाल को भारत ने अब तक बहुत सहयोग दिया है। लेकिन पिछले कुछ समय से भारत की मदद से शुरू हुई परियोजनाएं लटक गई हैं। इसमें सबसे अहम है तराई क्षेत्र में 1000 किलोमीटर का बनने वाला पोस्टल हाईवे। कई साल पहले इस परियोजना का संभावित बजट पांच सौ करोड़ रुपए था। इसके अलावा भी भारतीय सहयोग की कई परियोजनाएं रुकी हुई हैं।
राजनीतिक हलकों में माना जा रहा है कि निधि की यह यात्रा नेपाल के प्रधानमंत्री के तौर पर प्रचंड की पहली भारत यात्रा की भूमिका बनाने के लिए है। गौरतलब है कि 2008 में प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचंड ने अपनी पहली विदेश यात्रा के लिए चीन को चुना था, जिससे भारतीय खेमे में थोड़ी निराशा जगी थी। प्रचंड को इस महीने दूसरी बार नेपाल का प्रधानमंत्री चुना गया है। सरकार गठन के बाद प्रचंड के विशेष दूत निधि की यह पहली भारत यात्रा है। और उम्मीद जताई जा रही है कि जल्द ही प्रचंड भारत आकर द्विपक्षीय रिश्तों को मजबूत करने की पहल करेंगे।
इसके पहले निधि ने शुक्रवार को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की थी। उन्होंने सभी नेताओं से भारत की शांति प्रक्रिया में नेपाल का सहयोग मांगा। शनिवार को उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। मोदी ने कहा कि भारत और नेपाल में आपसी संबंध केवल उनकी दो सरकारों के बीच ही नहीं हैं बल्कि दोनों देशों के लोगों के बीच है। नेपाल के लोगों के साथ संबंध बेहतर बनाने के लिए भारत प्रतिबद्ध है। उन्होंने प्रचंड को भारत आने का निमंत्रण दिया। वहीं राष्ट्रपति के प्रेस सचिव वेणु राजमणि ने शनिवार को जारी बयान में बताया कि राष्ट्रपति ने कहा, ‘एकजुट नेपाल की स्थिरता और दीर्घकालिक शांति भारत के हित में है। भारत इस साझा लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में नेपाल के साथ मिलकर काम करेगा’।