गुजरात हाईकोर्ट ने कथित रूप से एक गाय की हत्या के मामले में एक व्यक्ति को राजकोट की सत्र अदालत से मिली दस वर्ष की सजा को निलंबित कर दिया है। हाईकोर्ट ने पाया कि अभियुक्त सलीम मकरानी पर पशु वध की आर्थिक गतिविधि में शामिल होने का आरोप नहीं है और इसलिए अदालत ने “न्यायिक विवेक” का इस्तेमाल करते हुए उसकी सजा निलंबित कर दी।
आर्थिक लाभ कमाने का आरोप नहीं : अदालत ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद कहा कि आरोपी उसका उपयोग किसी तरह का आर्थिक लाभ कमाने में नहीं कर रहा था, बल्कि अपनी बेटी की शादी समारोह में बिरयानी बनाने के लिए इस्तेमाल किया है। इसलिए उसे इतनी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती है। न्यायमूर्ति आरपी ढोलारिया की एकल पीठ ने कहा कि अदालत अपने न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करते हुए इस सजा को निलंबित करती है।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है मामला : मकरानी के वकील समीर खान ने कहा कि अभियोजन का मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित है। पीठ ने कहा कि आवेदक के खिलाफ कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं है। अभियोजन का मामला परिस्थितियों पर बनाया गया था और ट्रायल कोर्ट आरोपी को संदेह का लाभ दे सकती है।
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कोर्ट ने दिया रिहाई का आदेश : उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि आवेदक पशु वध के व्यवसाय में नहीं है और इसलिए सजा निलंबित करने के लिए याचिका मंजूर की गई। उच्च न्यायालय ने मकरानी को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया और उसे 10,000 रुपये के निजी मुचलके और जेल से उसकी रिहाई के लिए एक उतनी ही ज़मानत राशि जमा करने के लिए कहा।
गुजरात सरकार ने संशोधन कर बढ़ा दी थी सजा : गुजरात पशु संरक्षण अधिनियम 1954 में गाय हत्या के लिए छह माह की सजा है। 2011 में एक संशोधन से सरकार ने सात वर्ष कर दिया था। 2017 में गुजरात सरकार ने अधिनियम के सेक्शन 8 में बदलाव करते हुए सजा को अधिकतम दस वर्ष और जुर्माना एक लाख से बढ़ाकर पांच लाख कर दिया था।