अब हरियाणा के स्कूलों में भी हर सुबह प्रार्थना सभा के दौरान श्रीमद्भगवद गीता के श्लोक गूंजेंगे। उत्तराखंड की राह पर चलते हुए हरियाणा सरकार ने भी अपने स्कूलों में गीता पाठ को अनिवार्य कर दिया है। इस पहल की शुरुआत 17 जुलाई 2025 से की जा चुकी है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड ने राज्य के सभी सरकारी और निजी स्कूलों को इस संबंध में निर्देश जारी किए हैं।

हर सुबह की असेंबली अब गीता के श्लोकों के उच्चारण से शुरू होगी। इस कदम को छात्रों में नैतिक शिक्षा और आध्यात्मिक सोच बढ़ाने की दिशा में एक प्रयास बताया गया है। इसकी औपचारिक शुरुआत भिवानी स्थित सर्वपल्ली राधाकृष्णन लैब स्कूल से की गई, जहां हरियाणा बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. पवन कुमार ने खुद मौजूद रहकर गीता पाठ को शुभारंभ दिया।

हर सरकारी स्कूल में ‘श्लोक ऑफ द वीक’ की व्यवस्था

यह कदम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप भी है, जिसमें स्कूलों में 30% सिलेबस में स्थानीय संस्कृति, परंपरा और भारतीय ज्ञान व्यवस्था को शामिल करने की बात कही गई है। उत्तराखंड में पहले से ही हर सरकारी स्कूल में ‘श्लोक ऑफ द वीक’ की व्यवस्था है, जिसमें सप्ताहभर एक श्लोक अर्थ सहित पढ़ाया और समझाया जाता है। शुक्रवार को उस श्लोक पर चर्चा भी होती है।

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हरियाणा बोर्ड की योजना भी इसी तर्ज पर है। गीता के श्लोकों को धार्मिक पहचान से ऊपर उठाकर बच्चों में जीवन मूल्य, आत्म अनुशासन, चरित्र निर्माण और वैज्ञानिक सोच विकसित करने के एक साधन के रूप में देखा जा रहा है। गीता प्रचारक स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने भी इस फैसले की सराहना की है और कहा है कि यह युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में मदद करेगा।

हालांकि इस फैसले को लेकर समाज में दो तरह की राय है। एक ओर इसे भारतीय संस्कृति और शिक्षा में परंपरागत ज्ञान के समावेश के रूप में देखा जा रहा है, तो दूसरी ओर कुछ इसे धार्मिक शिक्षा थोपने का मामला मान रहे हैं। लेकिन सरकार का तर्क है कि गीता को केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जो हर किसी के लिए उपयोगी हो सकता है।

उत्तराखंड में गीता और रामायण को बाकायदा स्कूल पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनाया गया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर इनसे जुड़ी किताबें भी अगले सत्र से छात्रों को उपलब्ध करवाई जाएंगी। अब हरियाणा में भी ऐसा ही कदम उठाए जाने की उम्मीद की जा रही है। इस तरह, गीता का पाठ अब सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि नई पीढ़ी में सोच और मूल्यों की नींव मजबूत करने का माध्यम बनता जा रहा है।