गुजरात में 2002 में गुलबर्ग सोसायटी में हुए नरसंहार मामले की सुनवाई कर रही विशेष एसआईटी अदालत संभवत: सोमवार (13 जून) को मामले में सजा सुनाने की तारीख तय करेगी। इस नरसंहार में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोगों की हत्या के मामले में 24 दोषियों को सजा सुनाई जानी है। अभियोजन पक्ष की ओर से शुक्रवार (10 जून) को अंतिम दलीलों के बाद सजा पर बहस खत्म होने के साथ ही विशेष एसआईटी अदालत के न्यायाधीश पी. बी. देसाई ने मामले की सुनवाई 13 जून तक के लिए स्थगित कर दी। उम्मीद की जा रही है कि 13 जून को वह सजा सुनाने की तारीख तय करेंगे।
बहस के दौरान विशेष लोक अभियोजक और एसआईटी के वकील आर. सी. कोडेकर ने गुलबर्ग कांड में जीवित बचे लोगों और मृतकों के परिजनों को दिए जाने वाले मुआवजे से संबंधित विभिन्न सरकारी प्रस्ताव अदालत को सौंपे। हालांकि अदालत इससे संतुष्ट नहीं हुई और कहा कि इस तरह के मामलों में मुआवजा तय करने के लिए कोई स्पष्ट फार्मूला नहीं है। न्यायाधीश ने सवाल किया, ‘मुआवजा किसे? किस आधार पर? किस हद तक? आप जितना मांग कर रहे हैं, यह उतना आसान नहीं है। इस मामले को हम कितना लंबा खीचेंगे?’
कड़ी सजा की मांग करते हुए कोडेकर ने अदालत को बताया कि यह मामला ‘दुर्लभतम से दुर्लभ’ की श्रेणी में आता है और सजा द्वारा यह उदाहरण पेश किया जाना चाहिए कि समाज में ऐसी करतूतों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। मामले की सुनवाई के दौरान सोमवार (6 जून) को अभियोजन पक्ष ने इस मामले में दोषी ठहराए गए सभी 24 लोगों को मौत की सजा देने की मांग की थी। हालांकि बचाव पक्ष के वकील ने सजा में कुछ नरमी बरतने की मांग की है।
शुक्रवार (10 जून) को अभियोजन पक्ष को मौका दिया गया कि वह बचाव पक्ष की ओर से रखी गयी दलीलों पर अपनी जिरह पेश करे। कड़ी सजा देने के अपने विचारों पर जोर देते हुए एसआईटी के वकील आर. सी. कोडेकर ने अदालत को बताया कि गुलबर्ग सोसायटी के निवासियों की क्रूर हत्या में शामिल लोग, उनके जान-पहचान वाले थे या पड़ोसी थे, कोई आतंकवादी नहीं थे।
कोडेकर ने कहा, ‘आतंकवादियों द्वारा हत्या और पड़ोसियों द्वारा हत्या के मामलों में फर्क है। याकूब मेमन, अफजल गुरू और कसाब आतंकवादी थे, या फिर दूसरे देश की गतिविधियों के समर्थक थे। इस मामले में मैं कह सकता हूं कि भाई ने भाई को मारा। वे लोग पीड़ितों के मित्र और पड़ोसी थे।’ हालांकि अदालत ने पहले ही अपने फैसले में षड्यंत्र की पहलू को नकार दिया है, फिर भी कोडेकर ने कहा कि दोषियों ने ‘पहले ही क्षण से’ गुलबर्ग में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों की हत्या का मन बना लिया था।
उन्होंने कहा, ‘प्रत्यक्षदर्शियों ने कहा कि भीड़ ‘जय श्री राम और मुसलमानों को मारो’ दो नारे लगा रहे थी। उन्होंने सभी ओर से सोसायटी को घेर लिया। यह दिखाता है कि उन्होंने पहले से ही मुसलमानों की हत्या का मन बना लिया था।’ उन्होंने अदालत से अनुरोध किया कि दोषियों को यदि मौत की सजा नहीं दी जाती तो, जीवन पर्यंत कैद की सजा सुनाई जाए। पीड़ितों के वकील एस. एम. वोरा ने भी दोषियों के लिए अधिकतम सजा की मांग की है। एक वक्त पर न्यायाधीश ने उन्हें और दलीलें देने से मना करते हुए कहा कि एसआईटी के वकील पहले ही ऐसी दलीलें दे चुके हैं। जब वोरा ने जोर दिया तो, देसाई ने सवाल किया क्या उन्हें लगता है कि एसआईटी ने अपना काम ठीक से नहीं किया है।
वोरा की दलीलों को बीच में रोकते हुए देसाई ने कहा, ‘बहस अंतहीन तरीके से जारी नहीं रह सकती। इसे कहीं तो खत्म होना होगा। मैं सजा सुनाने की तारीख सोमवार (13 जून) को घोषित करूंगा।’ शुक्रवार (10 जून) की सुनवाई से नाराज वोरा ने अदालत के बाहर मीडिया से कहा कि एसआईटी को ज्यादा प्रभावी तरीके से मामला रखना चाहिए था। उन्होंने दावा किया कि एसआईटी और उसके वकील सुनवाई के दौरान षड्यंत्र का पहलू उठाने में असफल रहे। गुलबर्ग सोसायटी हत्याकांड 28 फरवरी, 2002 को हुआ था। उस दौरान नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे।