गुजरात में चल रहे चुनाव प्रचार में शनिवार (2 दिसंबर) को कांग्रेस की ओर से पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने मोर्चा संभाला और पीएम नरेंद्र मोदी पर एक के बाद एक कई हमले किये। डॉ मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी द्वारा बार-बार गरीबी में अपने गुजरे बचपन का जिक्र करने पर कहा कि वे नहीं चाहते कि उनके बैकग्राउंड को लेकर देश उन पर तरस खाए। सूरत में संवाददाताओं से बातचीत में पूर्व पीएम ने कहा, ‘मैं नहीं चाहता कि देश मेरे बैंकग्राउंड को लेकर मुझ पर तरस खाए, मैं नहीं सोचता हूं कि मैं इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ कोई कॉम्पीटिशन करना चाहूंगा।’ पूर्व पीएम ने सूरत में एक चुनावी रैली में नोटबंदी का भी जिक्र किया। डॉ मनमोहन सिंह ने कहा कि 8 नवंबर का दिन देश की अर्थव्यवस्था और लोकतंत्र के लिए काला दिन था। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह ने कहा, ‘ मैं 100 से ज्यादा उन लोगों को याद करता हूं जो कतार में खड़े होने के दौरान मर गये, इसकी वजह नोटबंदी थी। मैं बेहद दर्द और जिम्मेदारी के साथ कहना चाहूंगा कि 8 नवंबर का दिन भारत की इकोनॉमी और लोकतंत्र के लिए काला दिन था।’

डॉ मनमोहन सिंह ने पीएम मोदी द्वारा देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल की तुलना करने पर भी हमला बोला। डॉ मनमोहन सिंह ने कहा कि नरेन्द्र मोदी जी अक्सर दोनों नेताओं के बारे में बात करते हैं कि लेकिन इससे कुछ हासिल नहीं होने वाला है। भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह के इन बयानों पर प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि ये पूर्व प्रधानमंत्री की मजबूरी को दिखाती है। पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि, ‘डॉ मनमोहन सिंह को एक परिवार के प्रति वफादारी साबित करने के लिए गलत बातें भी बोलनी पड़ रही है, ये उनकी मजबूरी है। जीडीपी के आंकड़े अभी अभी आए हैं और उसके सारे सवालों का जवाब मिल गया है।’

बता दें कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने शुक्रवार को मनमोहन सिंह की तारीफ की है। ओबामा ने कहा कि 2008 के वित्तीय संकट के दुष्परिणामों से निपटने में मनमोहन सिंह ने बड़ा सहयोग दिया था। हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप सम्मेलन में ओबामा ने कहा, “(मनमोहन) सिंह हमारे मुख्य भागीदार थे, जब हम वित्तीय मंदी (2008) के दौरान काम कर रहे थे।” उन्होंने सिंह की बेहतरीन दोस्त बताते हुए तारीफ की और कहा कि उन्होंने आधुनिक भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव रखी।

सिंह ने भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए कहा, “अर्थव्यवस्था पर नोटंबदी के असर से सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 2017-18 की पहली तिमाही में नई गणना के तहत 5.7 फीसदी पर आ गई। जबकि इसमें वास्तविक असर का बहुत कम अंदाजा लगता है, क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र की हालत की गणना जीडीपी की गणना में पर्याप्त तरीके से नहीं की जाती है।” उन्होंने कहा, “हमारी जीडीपी की विकास दर में हरेक फीसदी की गिरावट से देश को 1.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है। इस गिरावट का देशवासियों के ऊपर पड़े असर के बारे में सोचें। उनकी नौकरियां खो गईं और नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर खत्म हो गए। व्यवसायों को बंद करना पड़ा और जो उद्यमी सफलता की राह पर थे, उन्हें निराशा हाथ लगी है।”

सिंह ने कहा कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट इस तथ्य के बावजूद आई है कि सरकार अपनी परियोजनाओं पर खूब खर्च कर रही है। “यहां तक कि इसके कारण राजकोषीय घाटा पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य का महज सात महीनों में ही 96.1 फीसदी तक जा पहुंचा है। पूरे साल का लक्ष्य 5,46,432 करोड़ रुपये तय किया गया है।” सिंह ने कहा, “इसका मतलब है कि विनिर्माण क्षेत्र पर निजी क्षेत्र द्वारा न्यूनतम खर्च किया जा रहा है.. इसके बावजूद जीडीपी की विकास दर को लेकर अनिश्चितता बरकरार है। आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर 6.7 फीसदी रहेगी। हालांकि अगर यह 2017-18 में 6.7 फीसदी तक पहुंच भी जाती है तो मोदीजी के चार साल के कार्यकाल की औसत विकास दर केवल 7.1 फीसदी ही रहेगी।”

उन्होंने कहा, “संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) के 10 साल के औसत में अर्थव्यवस्था की रफ्तार पांचवें साल में बढ़कर 10.6 फीसदी तक आ गई थी। अगर ऐसा दोबारा होता है तो मुझे बहुत खुशी होगी, लेकिन सच कहूं तो मुझे ऐसा होने की उम्मीद नहीं है।”