दिल्ली हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे पर सिर्फ मां-बाप का ही हक नहीं होता है। दादा-दादी का भी उतना ही हक होता है। कोर्ट ने यह फैसला चार साल की एक बच्ची के मामले में सुनाया। कोर्ट ने बच्ची की मां से यह भी कहा है कि वह बच्ची के दस्तावेजों से पिता का नाम ना हटाए। इतना ही नहीं कोर्ट ने महिला को उसकी बच्ची की दादा-दादी से वीडियो कॉल पर बात कराने का भी आदेश दिया है।
क्या है पूरा मामला?
एक महिला अपनी चार साल की बच्ची को लेकर जर्मनी चली गई। इसके बाद पिता ने इस मामले में बेटी को पेश के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण की याचिका दाखिल की। इस मामले में बेंच ने कहा कि चूंकि बच्ची अभी बहुत छोटी है इसलिए उसे अभी मां के साथ रहना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि इस दौरान बच्ची को उसके दादा-दादी से भी वीडियो कॉल पर बात कराई जाए। कोर्ट ने कहा कि दादा-दादी का पोता या पोती पर उतना ही हक होता है, जितना माता-पिता या अन्य रिश्तेदार का होता है। कोर्ट ने मां से यह भी कहा कि बच्ची भले ही मां के साथ रह रही है लेकिन उसकी राष्ट्रीयता भारतीय रहनी चाहिए। बच्ची के पिता भारतीय हैं।
कोर्ट ने क्या कहा
कोर्ट में जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की बेंच ने कहा कि दादा-दादी का अपने पोता-पोती के साथ लगाव औलाद से भी ज्यादा होता है। माता-पिता अपने बच्चों की दूरी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं, ऐसे ही दादा-दादी भी अपने पोते-पोती की दूरी बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। हमें उनकी भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए। उनके अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि महिला जब भी बच्ची से साथ भारत आएगी तो वह बच्ची को लेकर पिता और उसके दादा-दादी के साथ समय गुजारेगी।
