इंदौर की एक अदालत ने तलाक के बाद बेटी की कस्टडी मां को सौंपने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि प्यूबर्टी के दौरान बेटी को मां के पास होना चाहिए क्योंकि वह उसकी भावनाओं को समझ सकती है। इंदौर की फैमिली कोर्ट ने तलाक के बाद एक 10 साल की बच्ची की कस्टडी को लेकर यह फैसला सुनाया है।
कोर्ट ने कहा कि बच्ची युवावस्था की ओर बढ़ रही है ऐसे में उसकी भावनाओं को समझने और उसकी उचित देखभाल के लिए उसका अपनी मां के पास होना उसके लिए ज्यादा अच्छा है। बच्ची की मां के वकील जितेंद्र पुरोहित ने अदालत के फैसले की मंगलवार (22 मई, 2023) को जानकारी दी। फैमिली कोर्ट के एडिशनल चीफ जस्टिस प्रवीणा व्यास ने 25 अप्रैल को आदेश पारित किया था। इसमें उन्होंने कहा कि नाबालिग की उम्र 10 साल है और वह युवावस्था की ओर बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में उसके विकास और उसकी भावनाओं को समझने के लिए उसका अपनी मां के पास होना सबसे ज्यादा सही रहेगा।
हालांकि, कोर्ट ने अपने आदेश में पिता को कभी-कभी बच्ची से मिलने की भी इजाजत दी है। कोर्ट ने कहा कि पिता हर महीने शनिवार और रविवार के अलावा विशेष-त्योहारों एवं गर्मियों की छुट्टी के दौरान मां की सहमति पर तय अवधि में बच्ची से मिल सकते हैं। एडवोकेट पुरोहित ने बताया कि बच्ची के माता-पिता प्रदेश सरकार के गैजेटेड ऑफिसर हैं और आपसी विवाद के चलते उन्होंने 2021 में तलाक ले लिया था।
उन्होंने बताया कि दंपति के तलाक के बाद बच्ची अपने पिता के साथ रह रही थी। उसकी मां ने बेटी की कस्टडी के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की थी। पुरोहित ने बताया कि अपनी याचिका में महिला ने कहा था कि उसकी नाबालिग बेटी उम्र के नाजुक पड़ाव पर है और उसे माता के रूप में ऐसी महिला साथी की जरूरत है जिसके जरिए वह अपने मन की जिज्ञासाओं को शांत कर सके और शारीरिक बदलावों के बारे में सही मार्गदर्शन प्राप्त कर सके।