गंगा नदी को निर्मल और अविरल बनाने के उद्देश्य से शुरू हुई नमामि गंगे परियोजना का दूसरा तय लक्ष्य समय मार्च 2026 में खत्म हो रहा है, लेकिन उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में गंगा नदी का पानी नहाने लायक भी नहीं है। इन क्षेत्र में गंगा नदी के जल में मानक के अनुसार पीएच और घुलित आक्सीजन का स्तर नहीं पाया गया।

गंगा के पानी में बढ़ता प्रदूषण

लोकसभा में जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी द्वारा एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि कानपुर में फर्रुखाबाद से पुराना राजापुर, रायबरेली में डलमऊ, डी/एस मिर्जापुर से तारीघाट, गाजीपुर (दो स्थानों नामत : यू/एस वाराणसी, संगम के बाद गोमती और यू/एस गाजीपुर को छोड़कर) उत्तर प्रदेश में गंगा का पानी नहाने के लायक नहीं पाया गया। जबकि उत्तराखंड, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के संपूर्ण खंड में जैव रासायनिक आक्सीजन मांग (बीओडी) के संबंध में गंगा नदी की जल गुणवत्ता नहाने के लायक है।

मंत्री ने बताया कि गंगा पांच राज्यों से होकर बहती है। इन पांच राज्यों में उत्पन्न कुल सीवरेज की क्षमता करीब 10160 मिलियन लीटर प्रति दिन है। इसके विरुद्ध उपलब्ध सीवेज उपचार संयंत्र की क्षमता 7820 मिलियन लीटर प्रति दिन है। यह कुल क्षमता का करीब 77 फीसदी है। वहीं 1996 मिलियन लीटर प्रति दिन क्षमता के सीवेज उपचार संयंत्र की परियोजनाएं पूर्ण होने के विभिन्न चरण में हैं। यह कुल क्षमता का करीब 19.64 फीसद है। वहीं बचे हुए करीब साढ़े तीन फीसद क्षमता के सीवेज उपचार संयंत्र की परियोजनाएं को लेकर इसमें कोई जिक्र नहीं है।

आखिर कहां चूक हो रही है?

मंत्री ने बताया कि परियोजना की देरी होने के पीछे उपयुक्त भूमि को चिन्हित करना, मार्ग का निर्धारण करना, सड़क के निर्माण के लिए अनुमति प्राप्त करना, वन और राजस्व विभाग सहित अन्य से अनापत्ति पत्र सहित दूसरी वैधानिक मंजूरियां हासिल करने में लंबा समय लग जाता है। बता दें कि नमामि गंगे परियोजना को इस मकसद से शुरू किया गया था कि पिछली और अभी चल रही पहलों को बहाव क्षेत्र के साथ पूरी तरह से जोड़ा जा सके। इसे 2015 में एक केंद्रीय योजना के तौर पर मंजूरी दी गई थी। इसमें प्रदूषण कम करने के उपाय जैसे अलग-अलग कारण जैसे नगरपालिका सीवेज, औद्योगिक अपशिष्ट, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट सहित अन्य शामिल हैं।

पहले इस परियोजना को मार्च 2021 तक के लिए शुरू किया गया था। बाद में इस परियोजना को अप्रैल 2021 से मार्च 2026 तक 22,500 करोड़ रुपए के बजट में 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दिया गया।

गंगा में बढ़ गई है डाल्फिन की आबादी

लोकसभा में जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने कहा कि पिछले एक दशक से गंगा नदी में डाल्फिन की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2009 में 2500 से 3000 लोगों की अनुमानित आधार रेखा से संख्या, वर्ष 2015 में लगभग 3500 हो गई। साल 2021-2023 के दौरान किए गए राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के अनुसार यह लगभग 6327 तक पहुंच गई। यह साल 2009 के बाद से दोगुने से भी अधिक की वृद्धि को दर्शाता है। गंगा बहाव क्षेत्र की 17 सहायक नदियों में से कई नदियों में वर्ष 2021-2023 के आकलन ने डाल्फिन की उपस्थिति की पुष्टि की। इसमें रुपनारायण, गिरवा, कौरियाला, बाबा, राप्ती, बागमती, महानंदा, केन, बेतवा और सिंध, इनमें पहले उनका कोई रिकॉर्ड नहीं था।