राज्य के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा है कि खेती- किसानी की दिशा में बीज से लेकर बाजार तक परिवर्तन करने की जरूरत है। इस पर वैज्ञानिक शोध करें। इसमें बिहार सरकार पूरा सहयोग करेगी। लेकिन खाद्य सुरक्षा की दृष्टिकोण से जो बेहतर होगा उसे ही लागू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि श्रीलंका में कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि पैटर्न को बदलने का फैसला किया। नतीजों से हम सब अवगत हैं।
वे भागलपुर कृषि विश्वविद्यालय सबौर में दो दिवसीय 23 वीं प्रसार शिक्षा परिषद (रबी 2022) का उद्घाटन सोमवार को कर रहे थे। कृषि मंत्री ने कहा कि राज्य में कृषि विकास को लेकर पहला, दूसरा,तीसरा और अब चौथा कृषि रोडमैप आने वाला है। किसानों के हित में इसमें क्या कुछ बेहतर हो सकता है। इस पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। रोड मैप को सफलतापूर्वक धरातल पर उतारने के लिए 12 विभाग जुड़े हुए हैं,लेकिन इसमें कृषि विभाग का कार्य संतोषजनक नहीं पाया गया है। इसकी भी समीक्षा की जाएगी।
बैठक के दौरान कृषि मंत्री ने बिहार कृषि विश्वविद्यालय परिसर में बने परीक्षा भवन और टाइप-3 आवासीय भवन का भी लोकार्पण किया। उन्होंने मंचासीन अतिथियों के साथ किसानों के बीच एसडी कार्ड का वितरण, आर्य प्रोजेक्ट के तहत मछली बीज के वितरण के अलावा जहानाबाद और अरवल कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रकाशित कृषक संदेश, मुंगेर कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रकाशित कृषक समाचार और मधेपुरा कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रकाशित ड्रैगन फ्रूट की खेती पुस्तक का भी लोकार्पण किया। कार्यक्रम का संचालन रेडियो जॉकी की अनु कुमारी कर रही थी। धन्यवाद ज्ञापन सह निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ आरएन सिंह ने किया।
बैठक में विश्वविद्यालय के सभी डीन डायरेक्टर, विभागाध्यक्ष, सभी कॉलेजों के प्राचार्य, कृषि विज्ञान केंद्रों के मुख्य वैज्ञानिक उपस्थित थे। विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. नरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि देश का पूर्वी राज्य यूपी- बिहार और झारखंड कृषि की नई चुनौतियों से जूझ रहा है। धान का मौसम है और बारिश कम हो रही है। देश में 735 कृषि विज्ञान केंद्र हैं, जिसकी कृषि विकास में अहम भूमिका है।
सभी कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान और वैज्ञानिकों को अपने अपने क्षेत्र के जैव विविधताओं को ध्यान में रखकर आय बढ़ाने की बात पर उन्होंने बल दिया। उन्होंने कहा कि पारंपरिक खेती से किसानों की आय बढ़ने वाली नहीं है। इसके लिए उन्हें समेकित कृषि प्रणाली को अपनाना होगा। विपणन की सुदृढ़ व्यवस्था और खरीदार नहीं होने की वजह से बीज उत्पादन संघर्ष की दौर से गुजर रहा है।
बीयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डॉ सोहाने ने आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए खरीफ में किए गए कार्यों की प्रगति प्रतिवेदन को विस्तार से रखा और रबी 2022-23 की कार्य योजनाओं की विस्तार से चर्चा की। निदेशक शोध डा. पी के सिंह ने कहा कि उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिए हम किसानों के बीच विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित नई तकनीकी और प्रभेदों को ले जा रहे हैं, जिसका बेहतर परिणाम देखने को मिला है।
बिरसा कृषि विश्वविद्यालय रांची झारखंड के कुलपति डॉ ओमकार नाथ सिंह ने कहा कि किसानों को अपने उत्पाद का उनके नाम से रजिस्ट्रेशन कराएं , ताकि इसका लाभ उन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी मिलता रहे। उन्होंने वैज्ञानिकों से कहा कि जिन किस्मों का किसान सदियों से खेती करते आ रहे हैं उसके गुण को बरकरार रखते हुए उसके उत्पादन को बढ़ाने की दिशा में शोध करें।
बैठक की अध्यक्षता बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कुलपति डॉ अरुण कुमार ने की। उन्होंने कृषि मंत्री सहित सभी मंचासीन अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि बैठक में कृषि मंत्री के दिशा निर्देश और विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत करने आए दो विश्वविद्यालयों के कुलपतियों के अनुभवों का लाभ उठाकर राज्य में कृषि विकास को नई ऊंचाई दी जाएगी। उन्होंने कहा कि बीएयू के वैज्ञानिकों ने धान की एक ऐसी किस्म सबौर मेंं (संपन्न) विकसित की है जो बाढ़ और सुखाड़ दोनों ही परिस्थितियों में सहनशील है जो राज्य के किसानों के लिए एक बड़ी सौगात होगी।
उन्होंने कहा कि अगला वर्ष मिलेट वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। इस दिशा में भी विश्वविद्यालय अपने एक्शन प्लान पर काम कर रहा है। बैठक में शिरकत करने आए प्रगतिशील किसान धर्मेंद्र उपाध्याय, प्रसनजीत कुमार और बंदना कुमारी ने भी अपना अनुभव साझा किया। केवीके रोहतास के डॉक्टर आरके जलद और औरंगाबाद के डॉक्टर नित्यानंद ने अपने अपने केंद्र के प्रगति प्रतिवेदन पर विस्तार से जानकारी दी।