ओमप्रकाश ठाकुर
साल 2022 तक केंद्र सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की मुहिम चलाए हुए है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि किसानों की आय तो नहीं बढ़ी। वे कर्ज के जाल में जरूर फंस रहे हैं। कम से कम हिमाचल के किसानों की तो यही असलियत है। यहां का किसान कर्ज के नीचे बुरी तरह से दब चुका है। प्रदेश के किसानों पर सितंबर 2018 तक 8750 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज चढ़ चुका हैं। इनमें से 541 करोड़ रुपए से अधिक तो गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) में बदल चुका है। यानी किसानों ने जिस काम के लिए यह कर्ज लिया था, उससे उन्हें शून्य आय मिल रही हैं और वह कर्ज के बोझ तले दब गए हैं। इसके अलावा 775 करोड़ रुपए से ज्यादा कर्ज ऐसा है जिनकी किसान किस्तें नहीं दे पा रहे हैं। इस तरह से प्रदेश में 1316 करोड़ रुपए से अधिक का कर्ज किसान चुका नहीं पा रहे हैं और यह रकम लगातार बढ़ रही है। सबसे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर है कि किसानों का कर्ज तेजी से एनपीए में बदल रहा हैं। मार्च 2018 तक 458 करोड़ 95 लाख रुपए एनपीए था, जो बढ़कर अगली तिमाही जून 2018 में 507 करोड़ 54 लाख रुपए तक पहुंच गया। इसके बाद अगली तिमाही सितंबर तक यह रकम 541.45 करोड़ रुपए तक पहुंच गई।
राज्य में पांच लाख 43 हजार हैक्टेयर शुद्ध बुवाई क्षेत्र है। इस क्षेत्र में 9 लाख 61 हजार कृषि जोतें हैं। इनमें 88 फीसद जोतें 12 बीघा से कम हैं। इसका अर्थ यह है कि अधिकांश किसान सीमांत और छोटे किसान हैं और 80 फीसद खेती बारिश के पानी पर निर्भर है। ऐसे में किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी यह तो बड़ा सवाल है ही। इसके अलावा चिंता इस बात को लेकर है कि किसान कर्ज के बोझ में लगातार दबते जा रहे हैं। किसानों को सूदखोरों और महाजनों से बचाने के लिए बैंकों ने किसानों के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की योजनाएं चलाई। हिमाचल में यह योजना भी सफल नहीं हो पाई हैं। सितंबर 2018 तक प्रदेश में 9 लाख 45 हजार 892 किसान थे। इनमें से चार लाख 28 हजार 763 किसानों को ही किसान क्रेडिट मुहैया कराए जा सके हैं। ऐसे में केवल 45 फीसद किसानों तक ही किसान क्रेडिट कार्ड पहुंच पाए हैं। इन कार्डों की मदद से प्रदेश में बैंकों की ओर से 6268 करोड़ 33 लाख कर्ज बांटा गया है।
निदेशक कृषि देसराज शर्मा ने कहा कि प्रदेश सरकार की ओर से इस दिशा में अभी कुछ नहीं किया जा रहा हैं। दूसरी ओर, विशेषज्ञों का मानना हैं कि सबसे पहले प्रदेश को सिंचाई क्षेत्र बढ़ाना पड़ेगा। डॉक्टर यशवंत सिंह परमार बागवानी व वानिकी विवि नौणी सोलन के कुलपति डॉक्टर एचसी शर्मा ने बताया कि कम से कम 50 फीसद खेती योग्य जमीन को सिंचाई के तहत लाया जाना चाहिए। प्रदेश में यह संभव हैं। बारिश का पानी की एकत्रित किया जाए तो काम हो जाएगा। इसके अलावा नदी नालों की भी कमी नहीं हैं। कम से कम दस फीसद क्षेत्र सालाना सिंचाई के तहत आना चाहिए।
सिंचाई जैसी योजनाओं में किसानों की भगीदारी भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। ताकि वह उनका रखरखाव सही तरीके से कर पाएं। उन्होंने कहा कि किसानों की पैदावार बढ़ेगी तो आय भी बढ़ेगी। इसके अलावा किसानों को उत्तम बीज और तकनीक मुहैया कराई जानी चाहिए। बाकी काम किसान खुद कर लेगा। खेती व बागवानी के अलावा बाकी विकल्पों पर भी काम किया जाना चाहिए। इनमें मधुमक्खी पालन, मछली पालन जैसी गतिविधियों पर भी काम किया जाना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है अगर यह संभव हो गया तो न तो कर्जमाफी की जरूरत पड़ेगी और न ही सबसिडी की।